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________________ (२८) ध्यान दिया, कि ये तत्व वेद गम्य ही हैं । या तो ये तत्व मनुष्य की केवल कल्पमासोंके 'अायो । अभयारे मनुष्य बुद्धिगम्ब नहीं हैं. इनमेंसे कोई एक पक्ष स्वीकार करना पड़ेगा। अतएव परम्परागत धर्म-संस्थाकी स्थिरताके लिये और अपने मान्य अध्यात्मवादके समर्थन के लिये दृमरा पन्त ही कुमारिल और शंकराचार्य ने स्वीकार किया, और उन तत्वांका केवल वेद गम्यत्व ही अर्पण किया। यहाँ हमें वह न भूल जाना चाहिए कि वेदको मानव-कृत मान लेने पर उक्त तत्व निराधार हो रहर जाते हैं।" क्योंकि वैदिक समयमें ईश्वरकी कल्पना नहीं थी । परन्तु जब ईश्वर की कल्पना की गई. उप ममय भी देवताओंको ईश्वर नहीं मानागया। सभी वैदिक महर्षियों ने देवता और ईश्वर में स्पष्ट भद . बताया है। तथा वैदिक वांगमयमें और वैदिक दर्शनों में संस्कृत साहित्यमें देवताओंकी एक पृथक जाति मानी गई है। इसके लिये हम शतशः प्रमाण दे चुके हैं। तथा च इस विषयमें एक लेख सुप्रसिद्ध मासिकपत्र कल्याण' (वर्ष २० अंक ६ ) में प्रकाशित हुआ है उसे यहाँ उद्धृत करते हैं। . * उनके रहनेका स्थान भी इस लोकसे पृथक एक त्वर्ग लोक माना गया है, जिसका वर्णन म पृ० ३०५ पर कर चुक्र हैं । उन्म वर्णनसे यह सष्ट सिद्ध होता है कि वैदिक स्वर्ग नीर 'कुरान' की बहिश्त में बहुत कुछ साहश्व है।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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