SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वेद और देवता कुछ विद्वानों का कथन है कि वेदों में ईश्वर शब्द के न होने से क्या है, उनमें मृपि-कर्ता ईश्वर का अग्नि, प्रजापति, गुरूप, हिरण्यगर्भ. आदि शब्दों द्वारा बाणेन तो प्राप्त होता है। उन विद्वानों की सेवा में हमारा इतना ही निवेदन है कि वेदों में एक ईश्वर का नहीं अपितु अनेक देवत वाद का विधान है। तथा वैदिक देवों में से एक भी देव ऐसा नहीं है जिसको वतमान ईश्वर का स्थान दिया जा सके। क्योंकि वैदिक देवना नियतकर्मा हैं, तथा उनकी उत्पत्ति का एवं उनके शरीरों का उल्लेख वेदों में ही उपलब्ध होता है। यह ग्नब होते हुए भी आधुनिक विद्वानों ने. वैदिक देवताओं का अर्थ ईश्वर परक करने का प्रयत्न किया हैं । अत: यह अावश्यक है कि वैदिक देवों का यथार्थ स्वरूप समझ. लिया जाय। श्रीमान् पं.सत्यव्रतजी सामाश्रमीने निरुक्तालोचनमें लिखा है कि "वेदिकमन्त्रेषु स्तुता एव पदार्था तन्मन्त्रतः स्तुति काले एव च देवत्वेन स्तुता भवन्ति नान्ये नाध्यन्यत्रेत्येव वैदिक सिद्धान्तः।"* अर्थात्-चैदिक मन्त्रोंमें स्तुत्य पदार्थ उन्हीं मन्त्रों द्वारा स्तुति कालमें देवता कहलाते हैं। अन्यत्र तथा अन्य समयमें वे देवता गोट-प्रभाकर भट्ट का मत है कि देवता चतुश्रान्तचिनियोगान्त 'परा || १४ || सर्व दर्शन संग्रह | विनियोग के समय जिस के लिये मनु विभक्तिका प्रयोग होता है वहीं देवता है। अन्य समय व अन्यत्र देयता नहीं।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy