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( १८२ ) पाहिये और देखना चाहिये कि उस समय ऐतिहासिक अवस्था किस प्रकार थी। अस्तु ! यहाँ हमने "देव' शब्दको असुरं भाषा में देखा ( Devil वित) शैतान. 'प्रथम पह हमें प्रतीत हुधा । इससे मी अनुमान होता है कि देव जाति भी उसी प्रकार असुर जातिको सताती थी जैसी वह जाति इनको ससाती थी । परस्पर शत्रु, जाने के कारण ही परस्परके वाचक शब्द परस्परकी भाषामें कर अर्थ बताने वाले प्रसिद्ध हुये। ___ यद्यपि संस्कृतमें असुर और देव-शब्दोंके भले और बुरे भी अर्थ हैं, तथापि अमुरका बुरा अर्थ और देव शब्दका भला अर्थ अधिक प्रयोगमें है। इसलिये अल्प प्रयुक्त अन्य श्रर्थ पूर्वोक्त लियमका बाधक नहीं होसकता। अस्तु ! इससे सिद्ध है, कि ये दोनों जातियाँ, अर्थात् असुर जाति तथा देव जाति, परस्पर शत्रु
जाति थी, और मनुष्यों के समान ही उनका श्राकार था। इसमें . अत्र संदेह नहीं होसकता . . . .
देव भाषा। ... जिस भाषाको अाज कल संस्कृत भाषा कहते हैं उसका नाम . "देवभाषा भी है। इसके अन्य नाम, "देववाणी, देववाक ,
अमरभाषा, सुरगीः, सुरवाणी" इत्यादि बहुत हैं। इनका अर्थ यही है कि यह देव आतिको भाषा थी अर्थात् जो जाति त्रिविष्टप में रहती श्री उस मानव जातिका नाम "देव" था, और उसकी यह बोली थी जो इस समय संस्कृत भाषाके नामले प्रसिद्ध है। . इस भाषाका प्रयोग सिद्ध कर रहा है कि इस भाषाका प्रयोग करने वाली देव नामक जाति प्राचीन काल में थो। तश भाषाका , प्रयोग केवल. मनुष्य ही कर सकते हैं. अतः सिद्ध है कि देवनाम धारी मनुष्य ही थे । जिस प्रकार आयोको भाषाको आर्य भाषा