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बहुत होकर एक हानेकी इच्छा करना ऐसा मालूम पड़ता है कि उसने पहले बहुत हानेका कार्य भालेपनसे किया था भविष्यक ज्ञानसे यदि करता ते दूर करनेकी इच्छा ही क्यों होती यदि परब्रह्मकी इच्छा बिना ही महेश संहार करना है तो यह परब्रह्मका या ग्रहाका पिराधी कहलाया । ___ तथा एक प्रश्न यह भी है कि यह महेश संहार कैसे करता है, ? अपने श्रङ्गोंसे संहार करता है या उसकी इच्छा होनेसे स्वयमेव ही संहार होता है। यदि अपने अझांसे संहार करता है तो हम एक सम्म जडाः को काला है। यदि इसकी इच्छासे स्वयमेव सहार होता है तो इच्छा तो परब्रह्माने की थी इसने सहार कैसे किया ? ___तीसरा यह भी प्रश्न है कि सब लोकमें सहार हात समय जीव अजीव कहाँ गये। यदि जीवों में मसजीव ब्रह्ममें मिल गये
और अन्य जीव माया में मिल गये तो माचा अझसे अलग रहती है या पीछे ब्रह्ममें मिल जाती है. यदि अलग रहता हैं तो ब्रह्माको तरह माया भी नित्य हुई अद्वैत ब्रह्म नहीं रहा। और अगर माया और ब्रह्म एक हो जाते हैं तो जीव माया में मिले थे वे भी मायाके साथ ब्रह्ममें मिल गए। इस तरह महाप्रलयक समय सभीका परमप्रधमें मिलना रहा तो मोक्षका उपाय क्यों किया जाय । तथा जो जीव माया मिल गये थे वे ही जीव यादमें लोक रचनाके समय लोको पायगे या बे ब्रझमें ही मिले रहेंगे और नए पैदा होंगे। अगर वे ही आयेंगे तो मालूम हुआ कि वे अलग २ रहे मिलना क्या रहा। यदि नये पैदा होंगे तो जीवका अस्तित्व वाड़े ही समय तक रहा मुक्त होने के उपाय करनेसे क्या लाभ |
. लोककी अनादि निधनता प्रवादियोंका यह भी कहना है पृथ्वी श्रादिक मायामें मिल