SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षण २ में होता है, यह किस प्रकार अपने अंगांसे या किसीको प्राज्ञा देकर एक साथ संहार कराता है यदि महेश केवल इच्छा ही करता है और उनका संहार स्वयमेव होजाता है तो उसके सदा भारुप परिनाम ही न पाहिलें और लनेक जीवोंको एक साथ मारनेकी इच्छा भी कैसे होती होगी ? यदि महाप्रलयके समय संहार करता है तो परमब्रझकी इच्छानुसार करता है या उसकी विना इच्छाके करता है ? यदि परमब्रहाकी इच्छानुसार करता है तो उसे ऐसा क्रोध कैसे हुआ जो सबकी प्रलय करनेकी इच्छा हुई क्योंकि बिना किसी कारणके नाशकी इच्छा नहीं होती । और नाश करनेकी इच्छा ही का नाम काम क्रोध है इस लिये उसका कारण बताना चाहिये। यदि बिना कारण के इक्छा होती है तो वह पागलोंकी सी इच्छा हुई। यदि यह कहा जाय कि परमब्रह्मने यह स्वांग बनाया था बादमें दूर किया कारण कुछ भी नहीं है. तो स्त्रांग बनाने वाला भी उसे जब स्वांग अच्छा लगता है तभी बनाता है जब अच्छा नहीं लगता सब दूर करता है । यदि इसको इसी प्रकार लोक अच्छा या बुरा लगता है तो इसका लोकसे रागद्वेष हुआ। सय साक्षी स्वरूप परम्रा क्यों कहा जाता है. ? साक्षीभूत तो उसे कहते हैं जो अपने आप ही जैसा हो वैसा देखता जानता हो जो इष्ट अनिष्ट पैदा करे उसे साक्षीभूत कसे माना जा सकता है ? क्योंकि साशीभूत होमा और कर्ता हा होना दोनों परस्पर विरोधी बातें हैं। एकके दोनों बातें संभव नहीं हैं। __दूसरे परमब्रह्मके तो पहले यह इच्छा हुई थी कि मैं एक हूँ, यहुत होजा' तब बहुत होगया था। अब ऐसी इच्छा हुई होगी कि 'मैं बहुत हूँ. एक होजा'। जैसे कोई भोलेपनसे कार्य कर पीछे इस कार्यको दूर करना चाहता है वैसे ही परमब्रह्मका भी
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy