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________________ --- { ५३४ ) सूर्यका प्रकाश कुछ तीव्र हो उठता है, उसका नाम 'भग' है। भगोदयके पर कालवर्ती सूर्यका नाम है पूषा, । पूषासे अर्कोदय पर्यन्त अर्यमा' यहाँ तक पूर्वाल होगया । मध्यान्हकालकं सूर्यका नाम 'विष्णु' है । इस रातिसे ऋग्वेदमे एक सूरयके भग अयमा, पूषा, सविता और विष्णु अनेक नाम हैं। उदयसे अस्त पर्यन्त साधारण नाम सूर्य है। इसलिये ऋग्वेद में सूय्यको कभी भग नामसे कभी सविता नामसे कभी पूषा नामसे सम्बोधन किया गया है । और फिर एक ही वस्तु श्राकाशमें सूर्य, अन्तरिक्ष में विद्युत् , भूलोक अमि नामसे इन तीनों भावोंसे विकसित हो रही है। सुतरां अग्रिको सूर्य नामसे बुलाया गया है ! कहीं 'पद्र' भी अग्निका नामान्तर माना गया है । फिर ऐसी बात भी ऋग्वेदमें है कि. इन्द्र सभी देवताओंके प्रतिनिधि हैं। सुतरां अग्नि बा सूर्य इन्द्र नामसे भी सम्बोधित हैं। अग्निको चलसे उत्पन्न, बलका पुत्र भी अनेक स्थानों में कहा गया है। मरुद्गण रुद्रके पुत्र माने गये हैं। इससे यही ज्ञान होगा कि, अनि और मरुद्गण एइ ही वस्तु हैं या एक ही वस्तुके दो विकास हैं। इन सब हेतुओं से देवताओके नामोंकी भिन्नता वास्तविक भिन्नता नहीं। निमा लिखित मन्त्रोंसे पाठक निश्चय कर लेंगे कि, अवश्य ही देवतायें नामतः भिन्न नहीं हैं। इन्द्र का सूर्य नामसे सम्बोधन उत्-अस्चारमेषि सूर्य ! ८१९३१,८१५२१७ यदद्य कम हन्नुदगा अभिसूर्य ? ८९४,३३३३।६ रेशनहे सूर्य ! यजमानोंके चारों ओर उदित होगी। हे घृत्रहा इन्द्र सूयं भज यत्किंचित् पदार्थ के अमिमुख उदित हुए हो ।
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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