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________________ यस्य व्रतेवरुणों यस्य सूर्य ।।१०११३ त्वां विष्णु वृहनक्षयो मित्रो गृणति वरुणः । या शो मदत्यनु मारूतम् ||१शह समिन्द्रो अनुत संक्षोणी समु सूर्यम् ।।५२।१० हे इन्द्र ? तुम्हारी ही प्रशा एवं वलका अनुसरण कर अन्य समस्त देवता प्रज्ञावान एवं बलवान हैं। देवताओं में कोई भी इन्द्र के बल का अन्त नहीं पाता । वरुण और सूर्य प्रभृत्ति देवता वर्ग:इन्द्र के ही प्रत व कर्म में अब स्थित हैं । अर्थात् इन्द्र के ही कर्म का अनुसरण का मार्ग वरुणादि देवगा निज निज क्रिडा करते रहते हैं. १ विष्णु, मित्र. वरुण और मगत प्रभृति देवता वर्ग. हे इन्द्र ? तुम्हार। स्तुति किया करने हैं। इन्द्र ही धावापृथ्वी को अपने कार्य में प्रेरण करते हैं एवं इन्द्र ही सूर्य को प्रेमगणा करते हैं। इन्द्र में विश्वप्रश्चित हैं. "अरान्न नमिः परित्ता वभूव" ।।३२|१५| विष्णु के विषय में लिखा है। विष्णु । जनयन्ता सूर्य मुपा सपग्निम् 19888 न ते विष्णो जायमानो न जातो देव महिम्नः परमन्त माप HIKER विष्णु ने ही सूर्य. ऊपा एवं श्रग्नि को उत्पन्न किया है है विधाो ! कोई मनुष्य हो वा देवता हो तुम्हारी महिमाका अन्त पाता नहीं । अश्विनी कुमारीको लक्ष्य कर कहां गया है कि देवताओंमें जो मामर्थ्य है, उसे इद्रने ही देवताओं में रखा है । यब धारयया अमर्या । कलम 1-६ | ३६ | १ -.-..
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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