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________________ "प्रष्टीवमकः । एकादशरुद्रा द्वादशादित्याइमे एवं छायापृथिवीत्रयस्त्रिंश्यो, प्रयस्त्रिंशदू व देवाः प्रजापतिश्चतुस्त्रिशस्तदेनं प्रजापति करोति एतद् घा.""म एष प्रजापतिः सर्व व प्रजापतिः तदेनं प्रजापति करोति। श०४॥१२॥ ___ अथोत्-पाठ वसु. ग्यारह नद्र, बारह श्रादित्य, छौ और पृथिवी, य ३३ तेतीस देव है । प्रजापति चौतीसवां है सा इस यजमान को प्रजापति का बनाता है। यही वह जो अमृन है और अमृत है यही वह है । जो मरण धर्मा है वह भी प्रजापति है। मब कुछ प्रजापति है, अतः इस प्रजापति को करता है। ___यहां स्पष्ट रूप से यज्ञ का प्रजापति कहा है जो भाई प्रजापति का अथ इश्वर करते हैं उन्हें विचार करना चाहिय कि यहां भी स्पष्ट लिखा है, 'प्रजा पति करोति' अर्थात् प्रजापति को करता हूँ। तो क्या यह परमेश्वर को बनाता है। अतः सिद्ध है कि श्राह्मण ग्रन्थों में भी ईश्वर का जिकर नहीं है। श्रीमान पंनरदेव जो शास्त्री ने अपने ऋग्वद । लोचन के 'याज्ञिक पक्ष' में लिखा है कि याज्ञिक लोग बंदी को ऋषियों की अन्तः स्फूर्ति से उत्पन्न हुना ज्ञान मानते हैं। अग्नि, वायु. इन्द्र. मा श्रादि सभी देवताओं का 'चंतना विशिष्ट मानते हैं । उनका यह विश्वास है कि संसार की प्रत्येक अचेतन वस्तु का भी एक अभिमानी देवना अवश्य होता है। इनमें भी दोपक्ष हैं। एक पक्ष देवताओं का श्राकार वाला मानत हैं। मीमांसाकार का यह मत सम्मत नहीं है । उन्होंने इसका खण्डन किया है। दूसरा पक्ष देवताओं का श्राकार नहीं मानता साकार मानने वाला पक्ष यह कहता है कि---
SR No.090169
Book TitleIshwar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNijanand Maharaj
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year
Total Pages884
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Principle
File Size14 MB
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