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चूड़ान्त की प्रभा
आख्यान पावकुमार और प्रभावी का
वाराणसी का राजपत्र पायकुमार एक विचित्र लड़का है। उसका सब कुछ
निश्चित है : उसका सभी कुल एकदम निश्चित है। बट स्वगाव से ही अतिधि है। घर में भी बही नया है उसको। कय कहां होगा. कहा नहीं जा सकता। जारी नहीं कि उसे यहां या वहाँ ठीक समय पर होना चाहिए । चाहिए' शब्द उसके कोश में नहीं। जो चाहि वह तो यह अनायस होगा की है। वह तो बस, जा है ।
"आशा पारस, बड़े भाग. तुम आने । कहाँ र इतने दिन, बेटा :" "यही तो है, तुम्हारे सामने, माँ !" ''अभी तो हो, पर अब तक कड़ी धे, पारस ?"
"जहाँ है, वहीं हूँ। अब तक, नहीं, वहीं. जैसा कुछ लगता नहीं, पां!"
कितना याद करती हूं तो, बेटा। पर तुड़ो मंग याद स्पों अग्नं लगी :
"याद करना जरूरी नहीं, माँ। तुम हो, आश्वस्त हूँ। याद करना अनाश्वस्त होना है।"
"मां से माझे प्यार नहीं ? कितना प्यार करती हूँ. तुटा क्या पता ।" "या, अया करना होता है. पी। है ही, उसे करना क्या ?"
क. भी तो होता है।" "होता , व्याकल होने से । व्याकुल नहीं हो पाया में, तो क्या करू :
चूहान्त का प्रभा : 2