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कई शीर्षस्थ नवलेखकों और बौद्धिकों से लेकर, सामान्य पाठकों तक ने, तीर्थंकर' में इनके प्रकाशाक में ही, इन हानि वा ..!
और प्यार से अपनाया, उसे देखकर मैं स्तब्ध हूँ। अपने उन हजारों प्यारे पाठकों के सम्मुख मैं कृतज्ञता और कृतार्थता से नतमाथ हूँ। मेरे भावक इन्हें पड़कर आगे भी मुझो अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करेंगे, तो मैं उनका आभारी हूँगा।
महाशिवरात्रि : 20 फरवरी, 1974 गोविन्द निवास, सरोजिनो रोड, विले पारले (पश्चिम), मुम्बई 56
-चोरेन्द्र कुमार जैन
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