________________
के मोदकों से भरे हुए कई बड़े-बड़े थाल लाकर सजा दिये । प्रसादकामियों की विपुल भीड़ उमड़ पड़ो। सहसा ही कोलाहल से समन्तभद्र की ध्यान-तन्द्रा टूटी। वे बहिर्मुख होकर चुपचाप, अचंचल भाव से वह दृश्य देखते रहे। प्रसादाथियों की भीड़ उँटने पर पुजारी की दृष्टि जो समन्तभद्र पर टिकी. सो टिकी ही रह गयी। भक्ति-भावित हो उन्होंने सम्बोधन किया :
'भगवन्' प्रसाद ग्रहण नहीं करेंगे ?'
"शिवोऽ...शिवोऽन....शिवोऽ' कहते हुए समन्तभद्र ने भावित मधुर कण्ठ से स्तुति पान किया :
'दृश्यादृश्यप्रभूतवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी, लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाकुरी। श्रीविश्वेशमनःप्रसादकरी काशीपुराधीश्वरी,
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥' और फिर "शिवोऽहं...शिवोऽहं...' उच्चरित करते हुए महेश्वर-मूर्ति समन्तभद्र पुजारी की ओर बढ़ आये। बोले कि :
'आयुष्यमान, सर्वभूतों पर कृपा करके भूतभावन भगवान विश्वनाथ समग्र और अखण्ड नैवेद्य ग्रहण करने को उत्कण्टित हुए हैं ! एक महामोदक ये नव दिन तक निःशेष प्राशन करेंगे। प्रसाद-मोदकों के थाल अलग लगेंगे। विश्वनाथ के इस मन्दिर में अपूर्व होगा यह अनुष्ठान, जव पहली बार महेश्वर, मनुष्य के अर्पित नैवेद्य को, अपने पिण्ड में उदरस्थ करेंगे ।...जय भोलानाथ...जय-भोलानाथ... 'अनुसरण करो आयुष्यमान् ! शिवोऽहं...शिवोऽहं...शियोऽहं...।'
और खटाखट पादुकाएँ खड़खड़ाते हुए और त्रिशूल टैकते हुए समन्तभद्र निःशंक मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़कर सर्वभूत-भावन शाम्भवी भंगिमा के साथ शिवालय के गर्भगृह की ओर बढ़ गये। पुजारी भन्त्रमोहित-सा, आदेश का पालन करता हुआ, उनका अनुसरण करने लगा।
निर्ग्रन्थ गौरव के साथ, महालिंग के सम्मुख, पूजासन पर आरूढ़ हो समन्तभद्र ने आदेश दिया :
अनेकान्त चक्रवर्ती : भगवान् समन्तभद्र : 129