________________
(५०)
राग पंचम सुन री! सखी! जहाँ नेम गये तहाँ, मोकहँ ले पहुँचावो री-हाँ॥टेक॥ घर आँगन न सुहाय खिनक मुझ, अब ही पीव मिलावो री-हाँ । सुन.॥१॥ धन जोबन मेरे काम न ऐहै, प्रभुकी बात सुनावो री-हां ॥ सुन. ॥२॥ 'द्यानत' दरस दिखाय स्वामिको, भवआताप बुझायो री-हां ।। सुन. ॥ ३॥
राजुल अपनी सखी से कहती है कि हे सखी! मुझे वहाँ पहुँचा दो जहाँ नेमिनाथ चले गए हैं।.. .:.:: ::::, ... ... . ___मुझको यह घर, यह आँगन एक क्षण के लिए भी अच्छा नहीं लगता। अब तो मुझे अपने पिया, अपने प्रीतम से मिला दो।
यह धन, यह यौवन मेरे किसी काम में नहीं आने वाले हैं। मुझे तो प्रभु की बात-कथा सुनाओ। ___द्यानतराय कहते हैं - राजुल कह रही है कि ऐसे मेरे स्वामी के दर्शन मुझे करावो जिससे भवभ्रमण की पीड़ा दूर हो जाये, मिट जाये।
यनित भजन सौरभ