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राग केदारो सुन मन! नेमिजी के वैन॥टेक ।। कुमतिनासन ज्ञानभासन, सुखकरन दिन रैन । सुन. ॥ बचन सुनि बहु होहिं चक्री, बहु लहैं पद मैन । इंद चंद फनिंद पद लैं, शुद्ध आतम ऐन॥ सुन.॥ १।। वैन सुन बहु मुकत पहुँचे, बचन बिनु एकै ना हैं अनक्षर, रूप अक्षर, सब सभा सुखदैन।सुन.॥२॥ प्रगट लोक अलोक सब किय, हरिय मिथ्या-सैन। वचन सरधा करौ 'द्यानत', ज्यों लहौ पद चैन । सुन.॥३॥
हे मन! श्री नेमिनाथ के दिव्य वचनों को सुन । वे कुमति को नष्टकर, दिनरात ज्ञान का प्रकाशन करते हुए सुख उपजाते हैं।
उनके दिव्य वचन सुनकर ( अपने परिणामों के अनुसार पुण्य के फल से) कुछ चक्रवती-पद धारण करते हैं, कुछ कामदेव पद की प्राप्ति करते हैं। कुछ इन्द्र, चन्द्र, फणीन्द्र पद भी प्राप्त करते हैं और कुछ शुद्ध आत्मा की और नम/ झुक जाते हैं।
उनके दिव्य वचन सुनकर अनेक जन मुक्तिश्री का वरण कर चुके हैं। जो उनके वचन, जिनवाणी नहीं सुनते उनमें से एक भी मुक्त नहीं होता। वह ध्वनि निरक्षरी होकर भी अक्षररूप सारी सभा को सुख प्रदान करनेवाली होती है।
वह दिव्यवाणी सारे लोक और अलोक का प्रत्यक्ष बोध कराती है और सभी मिथ्या चिह्नों को हरनेवाली है। धानतराय कहते हैं कि उनके वचनों की श्रद्धा करो। सब पद त्र सब सुख-चैन उसी से प्राप्त होते हैं।
मैन - कामदेव।
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धानत भजन सौरभ