SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४७) राग सोरठ नेमि नवल देखें चल री । लहैं मनुष भवको फल री॥टेक॥ देखाने जात जात दुख तिनको, मान था तम दल दल री। जिन उर नाम बसत है जिनको, तिनको भय नहिं जल थल री॥ नेमि.॥१॥ प्रभुके रूप अनूपम ऊपर, कोट काम कीजे बल री। समोसरनकी अद्भुत शोभा, नाचत शक सची रल री । नेमि. ।। २॥ भोर उठत पूजत पद प्रभुके, पातक भजत सकल टल री। 'धानत' सरन गहौ मन! ताकी, जै हैं भवबंधन गल री॥ नेमि.॥३॥ हे सखी! चल, श्री नेमिनाथ की उज्ज्वल छवि को देखें, उनके दर्शन करें और मनुष्य भव पाने का फल पायें, अर्थात् मनुष्य भव को सार्थक करें । ___ जो जाकर उनका दर्शन करते हैं, उनके सब दुःख इस प्रकार दूर हो जाते हैं जैसे सूर्य के आते ही अन्धकार का समूह नष्ट हो जाता है, नाश को प्राप्त होता है । जिस भव्य के हृदय में उनके नाम का स्मरण आता है उनको पृथ्वी व समुद्र में अर्थात् जगत में कहीं भी कोई भय नहीं रहता। ऐसे प्रभु के अनुपम सुन्दर रूप पर, करोड़ों कामदेव बलिहारी हैं अर्थात् करोड़ों कामदेव भी न्यौछावर होते हैं। जिनके समवशरण की अद्भुत शोभा है, जहाँ इन्द्र और इन्द्राणी के समूह भक्तिपूर्वक नृत्य कर रहे हैं। जो प्रातः उठकर प्रभु के चरणों की पूजा-वन्दना करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं अथवा टल जाते हैं । द्यानतराय कहते हैं कि उनको अर्थात् भगवान नेमिनाथ को सदैव अपने मन में धारण करो, ग्रहण करो जिससे भव-भव के बंधन ढीले होकर नष्ट हो जाएँगे अर्थात् पाप-पुण्य रूपी बैंधे कर्म भी गल जाएँगे, नष्ट हो जाएँगे। बल बलि - न्योछावर। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy