________________
तैं कहुँ देखे नेमिकुमार ॥ टेक॥ पशुगन बंथ छुड़ावनिहारे, मेरे प्रानअधार ॥ .॥१॥ बालब्रह्मचारी गुनधारी, कियो मुकत्तिसों प्यार । तैं. ॥ २॥ 'द्यानत' कब मैं दरसन पाऊं, धन्य दिवस धनि वार।। तैं. ॥ ३॥
राजुल जन जन से पूछ रही है - क्या तुमने कहीं नेमिकुमार को देखा? जो पशुओं को बंधन से मुक्त करानेवाले हैं, जो मेरे प्राणों के आधार हैं, सहारा हैं !
वे नेमिकुमार जो बालब्रह्मचारी हैं, गुणों को धारण करनेवाले हैं, जिनने मुक्ति से प्यार किया है।
द्यानतराय कहते हैं (राजुल कह रही है) कि मैं जब उनके दर्शन पाऊँ वह ही दिन और वह ही वार धन्य हो जावेगा/होगा।
द्यानत भजन सौरभ