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________________ (३७) देख्या मैंने नेपिती प्यारा॥ टेक ॥ . मूरति ऊपर करों निछावर, तन धन जीवन जोवन सारा । देख्या.॥ जाके नखकी शोभा आगैं, कोटि काम छवि डारौं वारा। कोटि संख्य रवि चन्द छिपत हैं, वपुकी द्युति है अपरंपारा॥ देख्या.॥१। जिनके वचन सुनें जिन भविजन, तजि गृह मुनिवरको व्रत धारा 1 जाको जस इन्द्रादिक गायें, पावै सुख नासै दुख भारा ॥ देख्या. ॥२॥ जाके केवलज्ञान बिराजत, लोकालोक प्रकाशन हारा। चरन गहेकी लाज निवाहो, प्रभुजी 'द्यानत' भगत तुम्हारा। देख्या. ॥३॥ अहो! मैंने भगवान नेमिनाथ के दर्शन किए। उस मुद्रा पर मेरा तन, धन, यौवन, जीवन सब न्यौछावर है, अर्पित है, समर्पित है। जिनके चरणनखों से निसृत (निकलनेवाले) तेज की शोभा पर करोड़ों कामदेव की शोभा वारी जाये। उनके शरीर का तेज अपरंपार है, जिसका पार न पाया जा सके ऐसे उनके शरीर के तेज व आभा के समक्ष करोड़ों सूर्य और चन्द्र की ज्योति भी फीकी लगती हैं, वे उनके के प्रकाश में खो गए-से, छिप गए-से लगते हैं। जिनके वचन सुनकर भव्यजन घरबार छोड़कर मुनि होकर महाव्रत धारण करते हैं। जिनका यश इन्द्रादिक देव गाते हैं, भक्ति में मग्न हो जाते हैं और उस सुख में अपने तीन दु:ख के, पीड़ा के वेदना के भार को नष्ट कर देते हैं । ___ जो अरहन्त स्वरूप में केवलज्ञान सहित विराजते हैं व लोक-अलोक को प्रकाशित करते हैं, आलोकित करते हैं, देखते हैं, जानते हैं। द्यानतराय विनती करते हैं कि मैं आपका भक्त हूँ, मैंने आपके चरणों की शरण ली है, आप मेरी लाज रखिए - मेरा निर्वाह कीजिए, मुझे निबाहिए अर्थात् मुझे भी भवसागर से पार लगाइये। द्यानत भजन सौरभ ३९
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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