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________________ (३२) राग ख्याल कहुं दीठा नेमिकुमार ।। टेक ।। व्याहन आया बह दल लाया, रथ ऊपर असवार। इन्द्र सरीखे चाकर जाके, शोभा वार न पार॥ कहुं.॥१॥ नारायन अति कूर कमाया, धेरे जीव अपार । शोर जु कौने करुना भीने, दीने बंध निवार॥ कहुं.॥ २॥ पट भूषन बहु भार डारके, पंच महाव्रत धार। गये कहां कछु सुधि हू पाई, मोह कहो इह बार ॥ कहुं, ॥ ३॥ जो सुध लावै मोह मिलावै, सोई पीतम सार। 'द्यानत' कहै करोंगी सोई, देखौं नैन निहार।कहुं.॥४॥ राजुल जन-जन से पूछ रही है - अरे भाई? कहीं श्री नेमिकुमार को देखा है क्या? वे अपने भारी दल बलसहित रथ पर सवार होकर ब्याहने के लिए आए थे। इन्द्र-सरीखे उनके चाकर (सेवक) थे। उस समय उनकी शोभा अपार थी, अवर्णनीय थी। नारायण अत्यन्त निर्दयी हैं जिन्होंने बहुत-से जीवों को बंदी बना लिया ! इन जीवों को बंदी बनाकर उन्होंने बहुत पाप कमाया है । वे बंदी पशु-पक्षी विलाप कर रहे थे। उन्होंने (दूल्हे नेमिनाथ ने) उन पर करुणा करके बंधनमुक्त कर दिया। स्वयं विरक्त हो गये और वस्त्राभूषण को भार समझकर तज दिया, पंचमहाव्रत धारण कर मनि हो गए। वे कहाँ गये? किधर चले गए? मुझे एक बार तो इसकी सूचना-जानकारी कराओ। जो उनका अता-पता बतावे और उनसे मुझको मिलावे, वे ही मेरे प्रिय हैं, यही सार की बात है। द्यानतराय कहते हैं राजुल कह रही हैं कि मैं भी वही करूँगी जो उन्होंने किया है अर्थात् मैं भी संन्यास धारण कर लूँगी पर एक बार उन्हें आँखभर देखना चाहती हूँ। धानतभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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