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________________ I किया हैं । जिन्होंने इन्द्रिय-विषयों के सुख-दुःखों को छोड़कर अनन्त सुख को धारण किया है। उनकी गर्भ जन्म तप ज्ञान और मोक्ष ये पाँचों घटनाएँ/स्थितियाँ जगत के प्राणियों का कल्याण करनेवाली हैं, इसलिए पूज्य हैं। वे विरागी हैं, रागद्वेषरहित हैं। उन्होंने सब वस्त्र, वैभव आदि सब परिग्रह छोड़कर दिशाएँ ही जिनका वस्त्र है ऐसा नग्न-दिगम्बर वेश धारण किया। - वे सब गुणोंरूपी मणियों और आभूषणों से भूषित हैं। वे समस्त जगत से उदासीन हैं किन्तु अपने अभ्यन्तर जगत के / अपनी आत्मा के स्वामी हैं। हे बर्द्धमान भगवान ! हम कहाँ तक कहें ! आप तो सर्वज्ञ हैं, सब कुछ जानते हैं। भक्त द्यानतराय कह रहे हैं कि हमारी भी आपके समान हो जाने की भावना है, अभिलाषा है यही आपके गुणानुआद के लिए प्रमाण है। धानत भजन सौरभ ३८१
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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