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( ३०२ )
राग धमाल
रे भाई! करुना जान रे ॥ टेक ॥
घाट बाध नहिं कोय |
सब जिय आप समान हैं रे, जाकी हिंसा तू करै रे तेरी हिंसा होय ॥ रे भाई ॥ १ ॥
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छह दरसनवाले कहैं रे, जीवदया सरदार ।
पालै कोई एक है रे,
कथनी कथै हजार ॥ रे भाई ॥ २ ॥
कोण उनको पार
आधे दोनें कहा रे, परपीड़ा सो पाप है रे, पुन्य सु परउपगार ।। रे भाई ॥ ३ ॥
सो तू परको मति कहै रे, बुरी जु लागै तोथ । लाख बात की बात है रे, 'द्यानत' ज्यों सुख होय ॥ रे भाई ॥ ४॥
अरे भाई ! तू करुणाभाव, दयाभाव को जान रे । सारे जीव तेरे ही समान हैं, ऐसा समझ, ऐसा मान। उन जीवों में तुझसे कोई कमी अथवा बढ़ती नहीं है । जिनकी तू हिंसा करता है, उससे तेरे ही अपने सद्भावों की हिंसा होती है ।
छहों दर्शन कहते हैं कि जीवदया ही सर्वोपरि है। हजारों लोग यही कहते हैं पर इसका पालन कोई बिरला ही / एक ही करता है।
इस आधे दोहे में ही कि 'दूसरों को पीड़ा पहुँचाना पाप है'- करोड़ों ग्रंथों का सार कहा गया है। दूसरे के उपकार की भावना करना ही पुण्य है।
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जो बात तुझे स्वयं को बुरी लगती है, वह तू दूसरे को मत कह । द्यानतराय कहते हैं कि लाख बातों में मुख्य बात एक यह ही है जिससे सुख होता है।
द्यानत भजन सौरभ