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(२७६ ) कब हौं मुनिवरको व्रत धरिहौं ॥टेक ।। सकल परिग्रह तिन सम तजिकै, देहसों नेह न करिहौं। कब॥१॥ कब बावीस परीषह सहिकै, राग दोष परिहरिहौं। कब.॥२॥ 'धानत ध्यान-यान कब चढ़िक, भवदाध पार उत्तरिहौं। कब.॥३॥
ऐसा समय कब आयेगा जब मैं मुनिराज के समान व्रत धारण करूँगा!
सब परिग्रह को तिनके के समान त्यागकर, छोड़कर देह से मोहभाव छोडूंगा, ऐसा मुनिव्रत कब धारण करूँगा!
वह स्थिति कब आएगी कि बाईस परिषह को सहन करने की क्षमता मुझे प्राप्त होगी और राग-द्वेष मोह को छोड़कर समता धारण करूँगा!
द्यानतराय कहते हैं कि कब मैं ध्यानरूपी नाव पर, यान पर बैठकर भवसागर के पार होऊँगा?
तिन = तृण, तिनका।
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धानस भजन सौरभ