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________________ मन में शल्य होने पर बाहुबली को केवलज्ञान नहीं हो सका। मन की शल्य बनी ही रहीं और जैसे ही बात सुनकर मान छूटा, तत्काल केवलज्ञान दीप का प्रकाश जगमगा उठा। कुछ ऋषि तपस्वी जो नरक में जाते, उनका मन बदलते ही, चिन्तन की दिशा बदलते ही वे मोक्षगामी हुए। अरे, तन से अधिक वचन से और वचन से अधिक मन से पाप होता है। दान दिया, शील ग्रहण किया, परनिन्दा भी नहीं की। वेद पढ़े, ज्ञानी हुए, सब परिग्रह छोड़ दिया, परन्तु ध्यान के बिना ये सब महत्त्व न पा सके। स्पर्श, रस, गंध-वर्ण, स्वर अर्थात् पाँचों इन्द्रियों के विषयों को छोड़। जो भी इसमें मन लगाते हैं वे कोल्हू के बैल जो पचास कोस का चक्कर लगाने पर भी वहीं का वहीं रहता है, जैसी दशा को प्राप्त होते हैं। सब कार्यों के लिए मन ही कारण है । मन से ही विकल्प होते हैं और बंध बढ़ते हैं । निर्विकल्प मन ही मोक्ष को प्राप्त करता है - सीधी बात यह बताई गई है। द्यानतराय कहते हैं कि जो मन को वश में करते हैं वे मोक्ष-सुख को प्राप्त करते हैं । अरे, तुझे बार-बार समझाते हैं। जब समझ आती है तभी जागृति होती है, सवेरा होता है। अन्यथा पीछे पछताना पड़ेगा। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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