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संख्या भजन २७१. हम न किसी के कोई न हमारा २७२. हमारे कारज कैसे होय २७३. हमारे कारज ऐसे होर २७४. हमारे ये दिन यों ही गये जी २७५. ज्ञानी जीव दया नित पालैं
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गुरु
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२
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२७६. कब हौं मुनिवर को व्रत धरिहों २७७, कहत सुगुरु करि सुहित भविकजन २७८. गुरु समान दाता नहीं कोई २७९. धनि ते साधु रहत वनमाहीं २८०. धनि धनि ते मुनि गिरिवनवासी २८१. भाई धनि मुनि ध्यान लगाय के खरे हैं २८२. यारी कीजै साधो नात्न २८३. सोहा दीव साधु तेरी बातड़ियाँ जिनवाणी २८४. कलि में ग्रंथ बड़े उपगारी २८५. गौतम स्वामीजी मोहि वानी तनक सुनाई २८६. जब वानी खिरी महावीर की २८७, जिनवानी प्रानी ! जान लै रे २८८. तारन को जिनवानी २८९. वे प्राणी ! सुज्ञानी, जान जान जिनवाणी २९०, साधजी ने बानी तनिक सुनाई
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