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________________ पृष्ठ संख्या २८ २८७ २८९ ० २१२ ० ० ० ० संख्या भजन २४८. निज जतन करो गुन-रतननि को २४९, परमारथ पंथ सदा पकरो २५०. प्राणी लाल ! छांडो मन चपलाई २५१. प्राणी लाल ! धरम अगाऊ धारी २५२. प्राणी ! ये संसार असार है २५३, बसि संसार में मैं पायो दुःख अपार २५४. भाई ! आपन पाप कमाये आये २५५. भाई ! कहा देव गरवाना रे २५६. भाई काया तेरी दुख की ढेरी २५७. भाई ! ज्ञान का राह दुहेला रे २५८. भाई ! ज्ञान का राह सुहेला रे २५९. मानों मानों जी चेतन यह २६०. मिथ्या यह संसार है २६१. मेरी मेरी करत जनम सब बीता २६२. मेरे मन कब है हैं वैराग २६३. मोहि कब ऐसा दिन आय है २६४. ये दिन आछे लहे जी लहे जी २६५. रे जिय ! जनम लाहो लेह २६६, विपति में धर धीरा २६७, वीर ! री पीर कासों कहिये २६८. समझत क्यों नहि वानी २६९. संसार में साता नहिं वे २७०. सोग न कीजिए बावरे ० ० ० ० ३०४ ० ३०७ ० ३०८ ३१०
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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