SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२४६) धिक! धिक! जीवन समकित बिना॥ टेक। दान शील तप व्रत श्रुतपूजा, आतम हेत न एक गिना। धिक.॥ ज्यों बिनु कन्त कामिनी शोभा, अंबुज बिनु सरवर ज्यों सुना। जैसे बिना एकड़े बिन्दी, त्यों समकित बिन सरब गुना॥धिक. ॥ १॥ जैसे भूप बिना सब सेना, नीव बिना मन्दिर चुनना। जैसे चन्द बिहूनी रजनी, इन्हैं आदि जानो निपुना।। धिक. ।। २।। देव जिनेन्द्र, साधु गुरू, करुना, धर्मराग व्योहार भना। निहचै देव धरम गुरु आतम, 'द्यानत' गहि मन वचन तना।। धिक.॥३॥ जिसके जीवन में समंताभाव जागृत नहीं हुए उसके जीवन को धिक्कार है। .. उसने आत्मा के लिए हितकारी दान, शील, तप, व्रत, श्रुतपूजा, इन सबमें से किसी एक को भी नहीं माना। ___जैसे बिना पति के स्त्री की शोभा नहीं होती, जैसे कमल दल के बिना सरोवर की शोभा नहीं होती; यह ठीक वैसा ही है कि जैसे किसी अंक के बिना शून्य (बिन्दी) का कोई महत्त्व नहीं होता। उसी प्रकार समता भाव के बिना, सम्यकत्व के बिना गुण का कोई महत्व नहीं होता। हे ज्ञानी! इसे ऐसे ही जानो कि जैसे राजा के बिना सेना, नींव के बिना किसी मन्दिर का निर्माण, जैसे चन्द्रमा बिना रात्रि सुशोभित नहीं होती। व्यवहार से जिनेन्द्रदेव, साधुगण, करुणा, धार्मिक अभिरुचि को धर्म कहा गया है । द्यानतराय कहते हैं कि निश्चय से अपनी आत्मा ही देव है, धर्मगुरु है, उसकी ही मन-वचन-काय से विवेकपूर्वक आराधना कर। छानत भजन सौरभ २८३
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy