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________________ जो कोई भी किसी को नौकर रखता है वह उसे अन्न आदि देकर काम करता हैं। तू रात-दिन क्यों सोता रहा? तूने इन इन्द्रियों का खूब पोषण किया है फिर तूने इनसे अपना हित क्यों नहीं साधा? अब पछताने से क्या मिलेगा ? इस सबको कड़वी तूमड़ी जानकर छोड़ दे और परिग्रह को छोड़कर, रागद्वेष दोनों को नष्टकर तथा तप करके उनको सुखा दे, रसविहीन कर दे तो तू इस संसार - समुद्र से पार हो जावेगा। इस मनुष्य जन्म को पाने के लिए इन्द्र भी तरसता है कि कब मैं मनुष्य भवमनुष्य देह को पाकर, दीक्षा ग्रहण करूँ ! द्यानतराय कहते हैं कि इस प्रकार शिक्षा लेकर, फिर पाँच महको धारण करो, उनका करो २७२ धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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