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राग धनासरी कर सतसंगति रे भाई!॥टेक॥ पान परत नरपतकर सो तो, पाननिसों कर असनाई। कर, ।। चंदन पास नीम चन्दन है, काठ चढूयो लोह तर जाई। पारस परस कुधातु कनक है, बूंद उदधि-पदवी पाई। कर.॥ १॥ करई तूंवरी संगतिके फल, मधुर मधुर सुर करि गाई। विष गुन करत संग औषधके, ज्यों बच खाय मिटै घाई। कर.।।२।। दोष घटै प्रगटै गुन मनसा, निरमल है तजि चपलाई। 'द्यानत' धन्य धन्य जिनके घट, सतसंगति सरधा आई।। कर.॥ ३ ।।
हे भाई! तू भले लोगों के साथ रह, उनकी संगति कर । नागरबेल का पान खाने वाले राजा के हाथ में पान के साथ वह साधारण पत्ता भी, जिसमें पान का बीड़ा लिपटा कर रखा जाता है, पहुँच जाता है। अर्थात् नागरबेल के पत्ते की संगति के कारण साधारण पेड़ का पत्ता भी राजा के हाथों में पहुँच जाता है। ___चंदन वृक्ष के पास का नीम का पेड़ भी चन्दन की सुवास में भरा रहता है । लकड़ी की नाव के साथ उसमें लगा हुआ लोहा भी पानी पर तिर जाता है । पारस पत्थर के स्पर्श से लोहा भी सोना हो जाता है तथा समुद्र की एक बूंद भी समुद्र के साथ रहकर कहलाने लगती है।
तुंबी (तूमड़ी) कड़वी होती है। परन्तु उसका फल तंबूरे में लगकर मधुर एवं कर्णप्रिय स्वरनाद को गँजाता है। विष भी औषधि के साथ, औषधि रूप में गुणकारी परिणाम देने लगता है और उसके सेवन से प्राण-रक्षा होती है। जैसे कड़वी बच खाने से वात रोग का शमन होता है।
सत्संगति से दोष घट जाते हैं, गुण प्रकट होते हैं और चफ्लाई-उग्रता शान्त होकर निर्मलता का प्रादुर्भाव होता है। द्यानतराय कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनके मन में सत्संगति के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो गई है।
असनाई :- आशनाई, प्रेम, दोस्ती; बच .. एक कड़वी औषधि वाई - वायुरोग, वातरोग।
द्यानत भजन सौरभ
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