________________
(२२४) अब समझ कही। टेक॥ कौन कौन आपद विषयनितें, नरक निगोद सही॥अब.॥१॥ एक एक इन्द्री दुखदानी, पांचौं दुखत नही। अब.॥ २॥ 'द्यानत' संजम कारजकारी, धरौ तरौ सब ही। अब.॥३॥
हे जिय! मुझे अब जो समझ आई है सो कहता हूँ कि विषयों के कारण नरक व निगोद में क्या-क्या दुःख, कौन-कौन-से दु:ख सहे हैं।
एक-एक इन्द्रिय अनेक दु:ख देनेवाली है, उनके अपने-अपने अलगअलग दुःख है ।फर पाँचौ इन्द्रियों के दुःखों की तो बात ही क्या?
द्यानतराय कहते हैं कि संयम ही कार्यकारी है। संयम धारण करके सब ही तिर सकते हैं।
धानत भजन सौरभ
२५७