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________________ आपने अठारह दोषों को दूर कर दिया है तथा आपके छियालीस गुण हैं। जो दु:खी हैं उनको आप महान रत्न प्रदान करते हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, भाव और काल - इन छह प्रकार से आप मंगलकारी व दुःख का नाश करनेवाले सुखदाता हैं। जो अपने एक आत्मद्रव्य की ही आराधना करते हैं, वे सुख को साररूप में पाते हैं । हम आठ द्रव्य से आपकी पूजा करते हैं, तब भवचक्र से क्यों नहीं पार होंगे अर्थात् अवश्य होंगे। हे भगवन् ! आपके अनन्त गुण हैं, इन्द्र भी उनका वर्णन करने में समर्थ नहीं है। मैं तो अल्पबुद्धि हूँ इसलिए आप मेरी सहायता करें। हे जगत्गुरु, हे दीनदयाल, तीन लोक के स्वामी, भव्यात्माओं के पालक मैं आपकी वंदना करता हूँ। मैंने भावपूर्वक आपकी स्तुति-विनती की है । मेरा रोम-रोम पुलकित हो रहा है। धानतराय कहते हैं कि इस असार संसार से छूटने के लिए आपकी भक्ति ही एकमात्र साधन है, उपाय है। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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