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संख्या भजन १५८. हो स्वामी ! जगत जलधि तँ तारो १५९, हो भैया मोरे ! कहु कैसे सुख होय १६५ से कोई लिएर अगारी, ... :: ..... १६१. ज्ञाता सोई सच्या वे १६२. ज्ञान सरोवर सोई हो भविजन १६३, ज्ञान ज्ञेयमाहिं नाहि १६४, ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै १६५. ज्ञानी ऐसो ज्ञान विचारै भक्ति १६६. अरहंत सुमर मन बावरे १६७. इक अरज सुनो साहिब मेरी १६८. ए मन, ए मन कीजिए भज प्रभु १६९. करुनाकर देवा १७०. किसकी भगति किये हित होहि १७१. कोढी पुरुष कनक तन कीनो १७२. चौबीसों को वन्दना हमारी १७३. जिन के भजन में मगन रहु रे १७४. जिन जपि जिन जपि १७५, जिन नाम सुमर मन ! बावरे ! १७६. जिनपद चाहै नाहीं कोय १७७. जिनराय के पाय सदा शरनं १७८. जिनवरमूरत तेरी शोभा कहिय न जाय १७९. जिन साहिब मेरे हो
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