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________________ ( १९४) राग सोरठ देखो! भेक फूल लै निकस्यो, विन पूजा फल पायो । टेक ॥ हरषित भाव मर्यो गजपगतल, सुरगत अमर कहायो। देखो.॥ मालिनि-सुता देहली पूजी, अपछर इन्द्र रिझायो। हाली चरुसों दृढव्रत पाल्यो, दारिद तुरत नसायो। देखो.॥१॥ पूजा टहल करी जिगर पनि, ति सुरभव बनायो चक्री भरत नयौ जिनवरको, अवधिज्ञान उपजायो। देखो. ॥२॥ आठ दरब लै प्रभुपद पूजै, ता पूजन सुर आयो। द्यानत आप समान करत हैं, सरधासों सिर नायो। देखो.।३।। अरे देखो ! मेंढक मुँह में कमल का फूल लेकर पूजा हेतु निकला। उसने पूजा के भाव हो किए पर पूजा नहीं कर सका। फिर भी उसने बिना पूजा किए पूजा करने का फल पाया। अत्यन्त हर्ष से प्रमुदित वह राह में चलते हुए हाथी के पाँव नीचे आ गया और कुचला जाकर मर गया। अपने शुभ भावों के कारण देवों के मध्य जाकर देव हुआ और अमर अर्थात् देव कहलाया। ___ माली की लड़की ने जिन-मन्दिर की देहली को पूजकर भाव पूजा की और रूपवती अप्सरा के रूप में जन्म लिया, जिसके रूप पर इन्द्र भी रीझ गया । कृषक ने भी भाव पूजासहित व्रतों का दृढ़ता से पालन किया। उसने भी पूजा का शीघ्र ही फल पाया और दुःख-दरिद्र का नाश किया। जिन-जिन भव्यजनों ने पूजा की या जिन मन्दिर की सेवा-व्यवस्था में योग दिया उन्होंने पूजा के फलस्वरूप स्वर्ग में जाकर जन्म लिया, वहाँ अपना घर स्थापित किया। भरत चक्रवर्ती ने भक्तिभाव से जिनेन्द्र को नमन किया जिससे उन्हें अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई। देवपण अष्ट द्रव्य से श्री जिनेन्द्र की पूजा करने को आते हैं। यानतराय कहते हैं कि जिन्होंने भी आपको श्रद्धा से नमन किया, उन्हें ही आपने अपने समान बना लिया अर्थात् वे भी पूज्य बन गये। भेक - मेंढक; नयौ = नमन किया। २२४ द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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