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________________ -: . . ( १८३) . . . . . .... .. :::....: : श्रीजिननाम अधार, सार भजि ।। टेक : ... . . me अलर संसार दधित कौन उतारै पार ॥ श्रीजिन. ॥ कोटि जनम पातक कटैं, प्रभु नाम लेत इक बार। ऋद्धि सिद्धि चरननिसों लागै, आनंद होत अपार॥ श्रीजिन.॥१॥ पशु ते धन्य धन्य ते पंखी, सफल करें अवतार। नाम बिना धिक् मानवको भव, जल बल है है छार।। श्रीजिन.॥२॥ नाम समान आन नहिं जग सब, कहत पुकार पुकार। 'यानत' नाम तिहूँपन जपि लै, सुरगमुकतिदातार ॥ श्रीजिन. ॥३॥ हे भव्य ! श्रीजिन का नाम ही एक आधार है, सहारा है. अवलम्बन है, गुणों का सार है। उसका ही भजन करो, स्मरण करो। जिसकी गहराई का कोई पार नहीं है, थाह नहीं है, जिसका कोई किनारा नहीं है ऐसे दूर दूर तक व्याप्त इस संसाररूपी समुद्र से पार उतारनेवाला कौन है? प्रभु का एक बार स्मरण करने से करोड़ों जनम के पाप नष्ट हो जाते हैं। ऋद्धि व सिद्धि चरणों में आकर लोटने लगती है और अपार आनन्द की अनुभूति होती है। पशुओं व पक्षियों में भी वे धन्य हैं जो आपका नाम लेकर अपना जन्म सफल करते हैं। आपका नाम लिए बिना यह मनुष्य-जन्म, यह नरदेह निरर्थक है। अरे यह तो जलकर राख हो जाती है। श्रीजिन के नाम के समान इस जगत में अन्य कुछ भी नहीं है, यह ही बारबार कहते हैं। द्यानतराय कहते हैं कि तू मन, वचन, काय के संकल्पसहित श्री जिन नाम को जप ले, यह ही स्वर्ग त्र मुक्ति को देनेवाला है। द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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