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________________ (१५६) राग आसावरी हमको कैसैं शिवसुख होई ॥ टेक॥ जे जे मुकत जानके कारण, तिनको नहि कोई।। हमको. ।। मुनिवरको हम दान न दीना, नहिं पूज्यो जिनराई। पंच परम पद बन्दे नाही, तपविधि वन नहिं आई. । हमको.॥१॥ आरत रुद्र कुध्यान न त्यागे, धरम शुकल नहिं ध्याई। आसन मार करी आसा दिढ़, ऐसे काम कमाई॥हमको. ॥२॥ विषय-कषाय निगा 7 हूग, अनलो नुन कीन। मन वच काय जोग थिर करकैं, आतमतत्त्व न चीना ॥ हमको. ॥ ३॥ मुनि श्रावकको धरम न धार्यो, समता मन नहिं आनी। शुभ करनी करि फल अभिलाष्यो, ममता-बुध अधिकानी । हमको.॥४॥ रामा रामा धन धन कारन, पाप अनेक उपायो। तब हू तिसना भई न पूरन, जिनवानी यों गायो॥ हमको. ॥ ५ ॥ राग दोष परनाम न जीते, करुना मन नहिं आई। झूठ अदत्त कुशील गह्यो दिढ़, परिगृहसों लौ लाई॥हमको.॥६॥ सातौं विसन गहे मद धार्यो, सुपरभेद नहिं पाई। 'धानत' जिनमारग जाने बिन, काल अनन्त गमाई। हमको. ॥ ७ ॥ हे आत्मन् ! हमको मोक्षसुख की प्राप्ति कैसे हो? क्योंकि जो-जो भी मुक्ति के कारण कहे जाते हैं उनमें से तो एक भी हममें नहीं है। हमने कभी मुनियों को दान नहीं दिया अर्थात् आहारदान नहीं दिया। न श्री जिनराज की पूजा की। पंचपरमेष्ठियों की कभी वन्दना नहीं की और न कोई तप-साधना ही हमसे बन पड़ी। धानत भजन सौरभ १८१
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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