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(१३२) मगन रहु रे! शुद्धातममें मगन रहु रे ॥टेक । रागदोष परकी उतपात, निहचै शुद्ध चेतनाजात ॥ मगन.॥१॥ विधि निषेधको खेद निवारि, आप आपमें आप निहारि॥ मगन.॥२॥ बंध मोक्ष विकलप करि दूर, आनंदकन्द चिदातम सूर।। मगन. ॥ ३॥ दरसन ज्ञान चरन समुदाय, 'धानत' ये ही मोक्ष उपाय॥मगन. ॥ ४॥
..........----------...- -:.' हे भव्य! अपने शुद्ध आत्म स्वभाव में, उसके स्वरूप चिन्तन में तुम मगन
रहो।
_ये राग-द्वेष तो परद्रव्य के विकार हैं, उपद्रव हैं । निश्चय में तो तुम्हारी जाति चेतन ही है।
अपने आप में केवल अपने आत्म-स्वरूप का चिन्तन करो, उसे ही निरखो, देखो और जानो-पहचानो । भाव और अभाव का, पुण्य-पाप का अर्थात कों का नाशकर, समस्त दु:खों का निवारण कर ।
कर्मबंध और मोक्ष, दोनों का विकल्प छोड़ दो। तब सभी विकल्प से पर। यह अपना चिदात्म आनन्द का पुंज, सूर्य के समान अनुभव में आएगा।
द्यानतराय कहते हैं कि दर्शन, ज्ञान और चारित्र का सम्यक होना और उनका एकत्व होना ही मोक्ष का उपाय है।
द्यानत भजन सौरभ