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ग्यारह अंग और नौ पूर्व पढ़ लिए, उन्हें तोते की भाँति रट लिए, परन्तु देह और आत्मा के बीच भेद ज्ञान नहीं किया, नहीं जाना तो उसने अपने शिव स्वरूप को नहीं देखा, उसकी झलक भी नहीं पाई।
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ऐसा व्यक्ति दूसरों को उपदेश देता रहता है, उसका उपदेश सुनकर प्राणी मुक्त हो जाते हैं, परन्तु वह स्वयं इस संसार में ही रह जाता है। जैसे मल्लाह दूसरे को तो किनारे पर उतार देता है, पर नैया को नहीं छोड़ने के कारण आप स्वयं वहीं रुक जाता है ।
जिसके वचन दूसरों के लिए ज्ञान का प्रकाश करते हैं, पर उसके स्वयं के हृदय में मोह राग है, जिसकी कोई थाह नहीं है, तो उसकी दशा उस मशालची की तरह है जो औरों की तो प्रकाश दिखाता है और स्वयं अंधकार में ही रहता है।
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जिसकी चर्चा सुनकर दूसरों के पाप नष्ट हो जाते हैं, परन्तु चर्चा करनेवाला अपना मैल नहीं धोता है। उसको दशा उस दासी की सी है जो औरों को मलमलकर नहलाती है और स्वयं अपनी सुधि नहीं रखती ।
उसका क्या इलाज किया जावे, क्या उपाय किया जावे, जो समुद्र की गहरी धारा में डूब रहा हो । बहुत जाप जपे, बहुत तप किए, पर उनसे एक भी कार्य सिद्ध नहीं हुआ ।
अरे । तेरे स्वयं के भीतर यह चैतन्य आत्मा है वह ज्ञानवान है, उज्ज्वल है। द्यानतराय कहते हैं कि उसको जिसने देखा, वह सफल होकर भव- समुद्र के पार हो जाता है।
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द्यानत भजन सौरभ