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(११९) बीतत ये दिन नीके, हमको॥टेक ।। भिन्न दरब तत्वनिः धारे, चेतन गुण हैं जीके ।। बीतत. ।। १ ।।
आप सुभाव आपमैं जान्यो, सोइ धर्म है ठीके n बीतत. ॥२॥ 'द्यानत' निज अनुभव रस चाख्यो, पररस लागत फीके॥ बीतत.॥३॥
आत्मरुचि होने से अब हमारे ये दिन, ये समय, भली-भाँति बीत रहे हैं।
यह समय, यह देह, यह सब मुझसे भिन्न द्रव्य व तत्व है। चेतन गुण तो मुझ जीव का ही हैं।
अपः. मात्र मैंने जान लिग है, राइ हो धर्म है।
द्यानतराग्य कहते हैं कि जिसने अपने आत्मरस का आस्वादन कर लिया है, उसके लिए अन्य सभी रस - सभी आकर्षण फीके हैं।
द्यानत भजन सौरभ