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________________ ( ११६ ) पायो जी सुख आतम लखकै ॥ टेक ॥ BA ब्रह्मा विष्णु महेश्वरको प्रभु, सो हम देख्यो आप हरखकै ॥ पायो ॥ १ ॥ देखनि जाननि समझनिवाला, जान्यो आपमें आप परखकै ॥ पायो ॥ २ ॥ 'द्यानत' सब रस विरस लगें हैं, अनुभौ ज्ञानसुधारस चखकै ॥ पायो. ॥ ३ ॥ आत्मा को देखकर पहचानकर, अत्यन्त सुख की प्राप्ति/अनुभूति हुई है । हमने अपने इस ब्रह्मा, विष्णु, महेश- रूप स्वामी को, प्रभु को देख लिया है, पहचान लिया है और इसे देखकर हर्षित हैं, प्रसन्न हैं । यह ही देखने, जानने और समझनेवाला है। यह हमने अपने में स्वयं में ही अच्छी तरह परखकर, जाँचकर जान लिया है। द्यानतराय कहते हैं कि अनुभवरूपी ज्ञानामृत को चखने के पश्चात् जगत के सारे अन्य विषयादि रस फीके, नीरस व रसविहीन लगने लगते हैं। धानत भजन सौरभ १२९
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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