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________________ (१०५) राग मल्हार जगतमें सम्यक उत्तम भाई। टेक॥ सम्यकसहित प्रधान नरकमें, धिक शठ सुरगति पाई॥ जगत,॥ श्रावक-व्रत मुनिव्रत जे पालैं, जिन आतम लवलाई। तिन” अधिक असंजमचारी, ममता बुधि अधिकाई। जगत.॥१॥ पंच-परावर्तन से कीनें, बहुत बार दुखदाई। लख चौरासी स्वांग धरि नाच्यौ, ज्ञानकला नहिं आई। जगत.॥२॥ सम्यक बिन तिहुँ जग दुखदाई, जहँ भावै तहँ जाई। 'यानत' सम्यक आतम अनुभव, सद्गुरु सीख बताई॥जगत. ॥३॥ हे साधो ! जगत में सम्यक्त्व ही सर्वोत्तम है। सम्यक्त्वधारी राजा नरक में भी दुष्टता से मुँह मोड़े रहता है जिससे देव (सुर) गति पाता है, समता का अनुभव करता है। जिन्हें आत्मा के प्रति रुचि रहती है, होती है वे तो श्रावक के व्रतों व मुनि व्रतों का (अणुव्रत व महाव्रत का) पालन करते हैं, अधिक असंयमो लोग वे हैं जो मोह और ममता से ग्रस्त हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव व भव के परावर्तन पूरे करते हुए बहुतबार दुःख सहन किए हैं । चौरासी लाख योनियों में भाँति-भाँति के रूप-भव धारण किए हैं, फिर भी ज्ञान की कला नहीं समझ सके। सम्यक्त्व बिना सारा जगत दुःख देनेवाला है । सम्यक्त्व और संसार में तुम्हें जो भावे वहाँ ही जाओ अर्थात् वैसा ही स्वीकार करी । द्यानतराय कहते हैं कि सम्यक्त्व आत्मा का अनुभव हैं । सत्गुरु ऐसी ही सीख देते हैं, बतलाते हैं। ११८ द्यानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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