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जो भी क्षण तू विषय-भोग में खो रहा है वह क्षण तू श्री जिन-नाम को भजने में लगा। विषय-भोग से नरकादिक दुःख मिलते हैं और जिन-नाम के सुमिरन से वांछित सुख की प्राप्ति होती है।
विषय-भोगरूपी सर्प के इसने पर बहुत काल तक संसार-परिभ्रमण (चक्कर) होता ही रहता है। जिनके जीवन में विषय-भोग नहीं है उनका ही जीवन सार-स्वरूप है, प्रयोजनवान है।
चारों गतियों में नर-भव दुर्लभ है, यह बड़ी कठिनाई से मिलता है। इसके बिना मुक्ति नहीं होती अर्थात् मोक्ष केवल मनुष्य गति से ही प्राप्त होता है । वह (मनुष्य जन्म) तुमने भाग्योदय से प्राप्त कर लिया है, अब विषयभोग में लगकर उसे मत खोओ। अज्ञानी मनुष्य इस देह, धन और कुटुम्ब की लाज के कारण पापार्जन करता है। इन ठगों से ठगा जाकर वह बहुत दुःख पाता है।
जिनको तू अपना कहता है, वे तेरे नहीं हैं । या तो तू उनको छोड़ दे, अन्यथा ये तो तुझे छोड़कर जायेंगे ही।
एक पल का भी विश्वास नहीं है, काल सदा सिर पर मँडरा रहा है। तू फिर निश्चिन्त क्यों हो रहा है? यह भ्रम-जाल हैं, इसको छोड़ दे।
द्यानतराय पुकारकर कहते हैं कि जो तू अपना सुख चाहता हैं तो भगवान का भजन कर, यह ही जीवन का आधार हैं।
आव = आयु।
छानत भर