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________________ (१०३) राग धमाल चेतन प्राणी चेतिये हो, अहो भवि प्रानी चेतिये हो, छिन छिन छीजत आव। टेक॥ घड़ी घड़ी घड़ियाल रटत है, कर निज हित अब दाव॥ चेतन.॥ जो छिन विषय भोगमें खोवत, सो छिन भजि जिन नाम। वाते नरकादिक दुख पैहै, यात सुख अभिराम॥चेतन.॥१॥ विषय भुजंगमके इसे हो, सले बहुत संसार । जिन्हें विषय व्याय नहीं हो, तिनका जीवन सार॥ चेतनः ॥ २॥ चार गतिनिमें दुर्लभ नर भव, नर बिन मुकति न होय। सो तैं पायो भाग उदय हों, विषयनि-सँग मति खोय॥चेतन. ।। ३ ।। तन धन लाज कुटुंब के कारन, मूढ़ करत है पाप। इन ठगियों से ठगायकै हो, पावै बहु दुख आप ।। चेतन.॥ ४॥ जिनको तू अपने कहै हो, सो तो तेरे नाहिं । के तो तू इनकौं तजै हो, के ये तुझे तज जाहिं॥ चेतन. ॥ ५ ॥ पलक एककी सुध नही हो, सिरपर गाजै काल। तू निचिन्त क्यों बावरे हो, छोड़ि दे सब भ्रमजाल। चेतन.॥ ६ ॥ भजि भगवन्त महन्तको हो, जीवन-प्राणअधार । जो सुख चाहै आपको हो, 'शानत' कहै पुकार ।। चेतन.॥ ७॥ _हे चेतन ! हे प्राणी ! तू अब चेत! ओ भव्य! तू अब चैत । एक-एक क्षण आयु बीती जा रही है । घड़ी प्रतिक्षण/हर घड़ी/निरन्तर चलती ही रहती है, अब अपने हित के लिए कोई युक्तिकर। द्यानत भजन सौरभ ११५
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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