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(७७) आतम अनुभव सार हो, अब जिय सार हो, प्राणी ।। टेक ।। विषयभोगफणिने तोहि काट्यो, मोह लहर चढ़ी भार हो। आर्तम. ॥१। याको मंत्र ज्ञान है भाई, जप तप लहरिउतार हो!। आतम.॥२॥ जनमजरामृत रोग महा ये, 6 दुख सह्यो अपार हो॥ आतम.॥३॥ 'द्यानत' अनुभव-औषध पीके, अमर होय भव पार हो। आतम् ॥ ४॥
आत्मा का अनुभव होना सार है, महत्त्वपूर्ण है। इसलिए हे जीव! यह ही जीवन का सार है।
विषय भोगरूपी सर्षों के फणों से काटे जाने के कारण तुझ पर मोह की । गहल/नशा, एक लहर चढ़ रही है ।
इसका किस प्रकार निवारण किया जाए - इसके लिए एकमात्र सशक्त उपाय ज्ञान है, जिसके अनुरूप जप-तप से मोहरूपी/विषय-भोगरूपी सर्पदंश का जहर उतर जाता है।
जन्म, बुढ़ापा और मृत्यु - ये महान रोग हैं। इनके कारण मैंने बहुत दुःख सहे हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि अनुभव-ज्ञानरूपी औषधि पीकर तू भवसागर के पार होकर अमर हो जा।
धानत भजन सौरभ