SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १५५४ - । द्रव्यानुयोग-(३)] अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है, तो पुरथिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुम पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा?" उ. एवं खलु गोयमा !मए सत्त सेढीओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. उज्जुआयता जाव ७. अद्धचक्कवाला। १. उज्जुआयताए सेढीए उववज्जमाणे एगसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, ' २. एगओ वंकाए सेढीए उववज्जमाणे दुसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, ३. दुहओ वंकाए सेढीए उववज्जमाणे जे भविए एगपयरसि अणुसेढिं उववज्जित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा, ४. जे भविए विसेढिं उववज्जित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा। से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"एगसमइएण वा जाव चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।" एवं अपज्जत्तओ सुहमपुढविकाइओ लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहओ समोहणित्ता लोगस्स पुरथिमिल्ले चेव चरिमंते, १-२. अपज्जत्तएसुपज्जत्तएमय सुहुम-पुढविकाइएसु, ३-४. अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसु य सुहुम-आउकाइएसु, ५-६. अपज्जत्तएसुपज्जत्तएसुय सुहम-तेउक्काइएसु, ७-८. अपज्जत्तएसुपज्जत्तएसुय सुहुम-वाउकाइएसु, ९-१०.अपज्जत्तएसुपज्जत्तएसुय बायर-वाउकाइएसु, ११-१२. अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसु य सुहुमवणस्सइकाइएसु, अपज्जत्तएसु पज्जत्तएसुय बारसम वि ठाणेसु एएणं चेव कमेणं भाणियव्यो। सुहमपुढविकाइओ पज्जत्तओ एवं चेव निरवसेसो बारससु वि ठाणेसु उववाएयव्यो। एवं एएणं गमएणं जाव सुहुमवणस्सइकाइओ पज्जत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसुपज्जत्तएसुचेव भाणियव्यो। भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है? उ. गौतम ! वह एक समय, दो समय, तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है? प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि “वह एक समय, दो समय, तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है?" उ. गौतम ! मैंने सात श्रेणियाँ कही हैं, यथा १. ऋज्वायता यावत् ७. अर्द्धचक्रवाला। १. ऋज्वायता श्रेणी से उत्पन्न होने पर एक समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। २. एकतोवक्रता श्रेणी से उत्पन्न होने पर दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। ३. उभयतोवक्रता श्रेणी से उत्पन्न होने पर जो एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) से उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। ४. विश्रेणी से उत्पन्न होने पर वह चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"वह एक समय की यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।" इसी प्रकार अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव का लोक के पूर्वी चरमान्त में (मरण) समुद्घात करके लोक के पूर्वीचरमान्त में, १-२. अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों में, ३-४. अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मअप्कायिक जीवों में, ५-६. अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मतेजस्कायिक जीवों में, ७-८. अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मवायुकायिक जीवों में, ९-१०. अपर्याप्त और पर्याप्त बादरवायुकायिक जीवों में, ११-१२. अपर्याप्त और पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों में, इसी प्रकार इन अपर्याप्त और पर्याप्त रूप बारह ही स्थानों में इसी क्रम से उपपात कहना चाहिए। पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव के उपपात का कथन भी इसी प्रकार पूर्वोक्त बारह ही स्थानों में कहना चाहिए। इसी प्रकार इसी आलापक से पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक पर्यन्त पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों में उपपात का कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्वी-चरमान्त में मरण समुद्घात करके लोक के दक्षिणीचरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य है तोभंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? प. अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहणित्ता जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएसु उववज्जित्तएसेणं भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy