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________________ गर्भ अध्ययन उ. गोयमा ! दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गणं उववज्जेज्जा । प. से केणट्ठणं भंते! एवं वुच्चइ " दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?" उ. एवं खलु गोयमा ! मए सत्त सेढीओ पन्नत्ताओ, तं जहा१. उज्जुआयता जाव ७. अद्धचक्कवाला । १. एगओ यंकाए सेवीए उयवज्जमाणे दुसमइएण विग्गहेणं उबवज्जेज्जा, २. दुहओ बकाए सेढीए उबवज्जमाणे जे भविए एगपयरंसि अणुसेढिं उववज्जित्तए से णं तिसमइएणं विग्गहेणं उबबज्जेज्जा । ३. जे भविए विसेढिं उववज्जित्तए से णं चउसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं दुच्चइ "दुसमइएण वा, तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गणं उययजेज्जा । " , जाव एवं एएणं गमएणं पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए दाहिणिल्ले चरिमते उववायव्वो सुहुमवणस्सइकाइओ पज्जत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु पज्जत्तएसु चेव, सव्वेसिं दुसमइओ, तिसमइओ, चउसमइओ विग्गहो भाणियच्यो। प. अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमते अपज्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइ समझएणं विग्गहेणं उबबज्जेज्जा ? उ. गोयमा ! एगसमइएण वा जाव चउसमइएण वा विग्गणं उबवज्जेज्जा । प से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ "एगसमइएण वा जाब चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा ?" उ. गोयमा ! एवं जहेब पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहया पुरथिमिल्ले चैव चरिमते उबवाइया तहेव पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहया पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते उबबाएयव्वो सच्चे। प. अपज्जत्तसुहुमपुढयिकाइए णं भंते! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते ! कइ समइएणं विग्गणं उववज्जेज्जा ? उ. गोयमा ! एवं जहा पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिणिल्ले चरिमंते उबबाइओ तहा पुरथिमिल्ले समोहओ उत्तरिल्ले चरिमंते उववाएयव्वो । १५५५ उ. गौतम ! वह दो समय तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। , प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि , "वह दो समय तीन समय या चार समय की विग्रह गति से उत्पन्न होता है ?" उ. गौतम ! मैंने सात श्रेणियां कही हैं, यथा१. ऋज्वायता यावत् ७. अर्द्धचक्रवाला १. एकतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होने पर दो समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। २. उभयतोवक्रा श्रेणी से उत्पन्न होने पर जो एक प्रतर में अनुश्रेणी (समश्रेणी) से उत्पन्न होने योग्य है, वह तीन समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। ३. विश्रेणी से उत्पन्न होने पर चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि " वह दो समय तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है।" इसी प्रकार इसी आलापक से पूर्वी चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिणी चरमान्त में पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक का पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों में पथायोग्य दो समय तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उपपात का कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! जो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्वी चरमान्त में मरण समुद्घात करके लोक के पश्चिमीचरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! वह एक समय की यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि " एक समय की यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ?" उ. गौतम ! जैसे पूर्वी- चरमान्त में समुद्धात करके पूर्वी चरमान्त में ही उपपात का कथन किया, वैसे ही पूर्वी चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिमी चरमान्त में सभी के उपपात का कथन करना चाहिए। प्र. भंते ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव लोक के पूर्वी चरमान्त में मरणसमुद्घात करके लोक के उत्तरी-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव रूप में उत्पन्न होने योग्य है तो भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! जिस प्रकार पूर्वी चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिणी - चरमान्त में उपपात का कथन किया उसी प्रकार पूर्वी चरमान्त में समुद्घात करके उत्तरी-चरमान्त में उपपात का कथन करना चाहिए।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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