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________________ १५५६ द्रव्यानुयोग-(३) प्र. भंते ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव लोक के दक्षिणी चरमान्त में मरण समुद्घात करके दक्षिणी-चरमान्त में ही अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है तो प. अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स दाहिणिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स दाहिणिल्ले चेव चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? उ. गोयमा ! एवं जहा पुरथिमिल्ले समोहओ पुरथिमिल्ले चेव उववाइओ तहा दाहिणिल्ले समोहओ दाहिणिल्ले चेव उववाएयव्यो। तहेव निरवसेसं जाव सुहुमवणस्सइकाइओ पज्जत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसु चेव पज्जत्तएसु दाहिणिल्ले चरिमंते उववाइओ। एवं दाहिणिल्ले समोहयओ पच्चथिमिल्ले चरिमंते उववाएयव्यो, णवर-दुसमइय तिसमइय-चउसमइय विग्गहो सेसं तहेव। एवं दाहिणिल्ले समोहयओ उत्तरिल्ले उववाएयव्यो, जहेव सट्ठाणे तहेव एगसमइय-दुसमइय-तिसमइयचउसमइय विग्गहो। पुरथिमिल्ले जहा पच्चत्थिमिल्ले तहेव दुसमइयतिसमइय-चउसमइय विग्गहो। पच्चथिमिल्ले चरिमंते समोहयाणं पच्चथिमिल्ले चेव चरिमंते उववज्जमाणाणं जहा सट्ठाणे। भंते ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? उ. गौतम ! जिस प्रकार पूर्वी-चरमान्त में समुद्घात करके पूर्वी-चरमान्त में ही उपपात का कथन किया, उसी प्रकार दक्षिणी-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिणी-चरमान्त में ही उत्पन्न होने योग्य का उपपात कहना चाहिए। इसी प्रकार पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक का पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकों पर्यन्त दक्षिणी चरमान्त में उपपात कहना चाहिए। इसी प्रकार दक्षिणी-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिमीचरमान्त में उपपात का कथन करना चाहिए। विशेष-इनमें से दो समय, तीन समय या चार समय की विग्रहगति होती है। शेष पूर्ववत् कहना चाहिए। जिस प्रकार स्वस्थान में उपपात का कथन किया, उसी प्रकार दक्षिणी-चरमान्त में समुद्घात करके उत्तरी चरमान्त में उपपात का और एक समय, दो समय, तीन समय या चार समय विग्रहगति का कथन करना चाहिए। जिस प्रकार पश्चिमी-चरमान्त में उपपात का कथन किया उसी प्रकार पूर्वी-चरमान्त में दो समय, तीन समय या चार समय की विग्रहगति से उपपात का कथन करना चाहिए। पश्चिमी-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिमी चरमान्त में ही उत्पन्न होने वाले का कथन स्वस्थान के अनुसार करना चाहिए। उत्तरी-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव के एक समय की विग्रहगति नहीं होती। शेष सब कथन पूर्ववत् है। पूर्वी-चरमान्त में उपपात का कथन स्वस्थान के अनुसार जानना चाहिए। दक्षिणी चरमान्त के उपपात में एक समय की विग्रहगति नहीं होती है। शेष सब कथन पूर्ववत् है। उत्तरी-चरमान्त में समुद्घात करके उत्तरी-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव का कथन स्वस्थान में उपपात के समान जानना चाहिए। इसी प्रकार उत्तरी-चरमान्त में समुद्घात करके पूर्वी-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीवों के उपपात का कथन करना चाहिए। विशेष-इनमें एक समय की विग्रहगति नहीं होती है। उत्तरी-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिणी-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीवों का कथन भी स्वस्थान के समान है। उत्तरी-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिमी-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीवों के एक समय की विग्रहगति नहीं होती है। शेष कथन पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक का पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों पर्यन्त उपपात का कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। उत्तरिल्ले उववज्जमाणाणं एगसमइओ विग्गहो नत्थि। सेसं तहेव। पुरथिमिल्ले जहा सट्ठाणे। दाहिणिल्ले एगसमइओ विग्गहो नत्थि, सेसंतंचेव। उत्तरिल्ले समोहयाणं उत्तरिल्ले चेव उववज्जमाणाणं जहा सट्ठाणे। उत्तरिल्ले समोहयाणं पुरथिमिल्ले उववज्जमाणाणं एवं चेव, णवरं-एगसमइओ विग्गहो नत्थि, उत्तरिल्ले समोहयाणं दाहिणिल्ले उववज्जमाणाणं जहा सट्ठाणे। उत्तरिल्ले समोहयाणं पच्चत्थिमिल्ले उववज्जमाणाणं एगसमइओ विग्गहो नत्थि, सेसं तहेव जाव सुहुमवणस्सइकाइओ पज्जत्तओ सुहुमवणस्सइकाइएसुपज्जत्तएसुचेव। -विया. स.३४/ए.१,उ.१,सु.१-६८
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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