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पुद्गल के मुख्यतः दो भेद हैं- ( 9 ) परमाणु या अणु और (२) स्कन्ध किसी अपेक्षा से पुद्गल के चार भेद भी प्रतिपादित है(१) स्कन्ध, (२) स्कन्ध देश, (३) स्कन्ध प्रदेश और (४) परमाणु। अनेक परमाणुओं का संघात स्कन्ध कहलाता है। पुद्गल द्रव्य का वह प्रत्येक खण्ड जो स्वतन्त्र सत्तावान् है वह स्कन्ध है, यथा-ईंट, पत्थर, कुर्सी, टेबल आदि। एक से अधिक स्कन्ध मिलकर भी एक नया स्कन्ध बन सकता है, यथा- अनेक पत्थरों से मिलकर बनी दीवार । स्कन्ध का जब विभाजन होता है तो वह अनेक परमाणुओं में विभक्त हो सकता है, किन्तु जब तक परमाणु की अवस्था नहीं आती तब तक वह स्कन्धों में ही विभक्त होता है। इस प्रकार स्वतन्त्र सत्ता की दृष्टि से स्कन्ध एवं परमाणु भेद ही उपलब्ध होते हैं। देश एवं प्रदेश भेद बुद्धि-परिकल्पित हैं, वास्तविक नहीं। जब स्कन्ध का कोई खण्ड बुद्धि से कल्पित किया जाता है तो उसे देश कहते हैं, यथा- पृथ्वी स्कन्ध का बुद्धिकल्पित देश 'भारत' है। कोई टेबल एक स्कन्ध है, उसका एक हिस्सा जो उससे अलग नहीं हुआ है वह उस टेबल-स्कन्ध का देश कहलाता है। स्कन्ध से अविभक्त परमाणु को प्रदेश कहते हैं। जब वह स्कन्ध से पृथक् हो जाता है तो 'परमाणु' कहा जाता है। यह पुद्गल का अविभाज्य अंश होता है। पुद्गल को स्कन्ध की अपेक्षा भिदुर स्वभाव वाला तथा की अपेक्षा अभिदुर स्वभाव वाला कहा जाता है । इन्द्रियग्राह्य पुद्गल बादर एवं शेष परमाणु हैं । सूक्ष्म
वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श एवं संस्थान में परिणमित होने की दृष्टि से पुद्गल पाँच प्रकार का होता है- (१) वर्णपरिणत, (२) गन्धपरिणत, (३) रसपरिणत, (४) स्पर्शपरिणत एवं (५) संस्थानपरिणत किन्तु प्रत्येक पुद्गल द्रव्य में ये पाँचों गुण रहते हैं। कोई भी पुद्गल ऐसा नहीं है जो वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श एवं संस्थान (आकार) से रहित हो।
वर्ण के पाँच प्रकार हैं- (१) काला (२) नीला, (३) लाल, (४) पीला और (५) श्वेत गंध के दो प्रकार हैं- (१) सुरभिगंध और (२) दुरभिगंध। रस पाँच प्रकार का है - ( १ ) तिक्त, (२) कटु, (३) कषैला, (४) खट्टा और (५) मीठा स्पर्श के आठ प्रकार हैं- (१) कर्कश, (२) मृदु, (३) गुरु, (४) लघु (५) शीत, (६) उष्ण, (७) रुक्ष और (८) स्निग्ध संस्थान के पाँच या छह प्रकार प्रतिपादित हैं। पाँच प्रकार हैं- (१) परिमण्डल, (२) वृत्त, (३) त्रिकोण, (४) चतुष्कोण और (५) आयत। छह प्रकार मानने पर (६) अनियंत की भी गणना होती है।
पुद्गल द्रव्य परमाणु के पश्चात् द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी, चतुःप्रदेशी, पंचप्रदेशी यावत् दशप्रदेशी होता है। दंश के पश्चात् संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी एवं अनन्तप्रदेशी पुद्गलों का निरूपण किया जाता है। एक परमाणु पुद्गल, एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श वाला होता है । द्विप्रदेशी स्कन्ध कदाचित् एक वर्ण वाला, कदाचित् दो वर्ण वाला, कदाचित् एक गंध वाला, कदाचित् दो गंध वाला, कदाचित् एक रस वाला कदाचित् दो रस वाला कदाचित् दो स्पर्श वाला कदाचित् तीन स्पर्श वाला और कदाचित् चार स्पर्श वाला होता है। इस प्रकार त्रिप्रदेशी आदि स्कन्धों में रस वर्ण आदि की संख्या कदाचित् बढ़ती जाती है। इससे द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी वर्णादि की अपेक्षा अनेक भंग वन जाते हैं।
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वर्णादि के परिणमन को लेकर आगम में वर्णपरिणत के १०० भेद, गंधपरिणत के ४६ भेद, रसपरिणत के १०० भेद, स्पर्शपरिणत के १८४ भेद और संस्थानपरिणत के १०० भेद प्रतिपादित हैं। कुल मिलाकर इनके ५३० भेद या भंग बनते हैं।
पुद्गल के भेद एवं संघात का तत्त्वार्थसूत्र में तो कथन मिलता ही है, किन्तु व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में उसका विस्तार से निरूपण हुआ है। तत्त्वार्थसूत्र में संघात भेद एवं संघात भेद से स्कन्ध की उत्पत्ति का निरूपण है २ तथा भेद से अणु या परमाणु की उत्पत्ति का कथन है । ३ स्कन्ध दो प्रकार का माना जाता है - (१) चाक्षुष - जिसे आँख से देखा जा सके और (२) अचाक्षुष - जिसे आँख से न देखा जा सके। चाक्षुष स्कन्ध की उत्पत्ति भेद एवं संघात से होती है। व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में कहा गया है कि पुद्गलों का संघात एवं भेद कभी अपने स्वभाव से होता है और कभी दूसरे निमित्त से होता है। परमाणु पुद्गलों के मिलने से स्कन्ध का निर्माण होता है तथा पुद्गल का अधिकतम विभाजन परमाणु पुद्गल के रूप में होता है।
एक परमाणु गति करने पर एक समय में लोक के अन्त तक पहुँच सकता है। परमाणु की इस प्रकार की गति का वर्णन अन्य किसी भारतीयदर्शन में नहीं है तथा यह वैज्ञानिकों के लिए भी शोध की प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस समय सर्वाधिक गतिशील वस्तु प्रकाश है जो एक सेकण्ड में लगभग ३ लाख किलोमीटर की दूरी तय करता है। जैनदर्शन के अनुसार प्रकाश भी पुद्गल का ही एक प्रकार है। पुद्गल की गति इससे भी तीव्र हो सकती है। एक परमाणु एक समय में सम्पूर्ण लोक तक पहुँच सकता है। भगवतीसूत्र में वर्णित अस्पृशद्गति से भी इसका समर्थन होता है।"
स्थानांगसूत्र में तीन कारणों से पुद्गल का प्रतिघात बतलाया गया है- ( १ ) एक परमाणु पुद्गल दूसरे परमाणु पुद्गल से टकराकर प्रतिहत होता है, (२) रुक्ष स्पर्श से प्रतिहत होता है और (३) लोकान्त में जाकर प्रतिहत होता है।
परमाणु के जैनागमों में चार प्रकार प्रतिपादित हैं - (१) द्रव्यपरमाणु, (२) क्षेत्रपरमाणु, (३) कालपरमाणु और (४) भावपरमाणु । द्रव्यपरमाणु के अच्छेय, अभेव, अदाह्य और अग्राह्य ये चार भेद किए गए हैं। क्षेत्रपरमाणु के अनर्द्ध, अमध्य, अप्रदेश और अविभाज्य ये
१. विवरण के लिए द्रष्टव्य, द्रव्यानुयोग, पृ. १२२७-१२२८
२. संघातभेदेभ्यः उत्पद्यन्ते ।
३. भेदादपुः ।
४. भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषाः ।
५. परमाणु पुद्गलों से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्धों को परस्पर स्पर्श किए बिना होने वाली गति को अस्पृशद्गति कहते हैं।
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-तत्त्वार्थसूत्र ५/२६
-वही ५/२७
- वही ५/२८