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________________ १९९६ ते णं नरगा, छट्ठीए तमाए पुढवीए नरएहितो महत्तरा चेव, महावित्थिण्णतरा चेव, महोवासतरा चेव, महापइरिक्कतरा चेव, नो तहा महापवेसणतरा चेव, आइण्णतरा चेव, आउलतरा चेव, अणोमाणतरा चेव। तेसु णं नरएसु नेरइया छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइएहितो महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महासवतरा चेव, महावेयणतरा चेव। नो तहा अप्पकम्मतरा चेव, अप्पकिरियतरा चेव, अप्पासवतरा चेव, अप्पवेयणतरा चेव। अप्पिड्ढियतरा चेव, अप्पजुइयतरा चेव, नो तहा महिड्ढियतरा चेव, महज्जुइयतरा चेव। छट्ठीए णं तमाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पण्णत्ते। ते णं नरगा अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहितो नो तहा महत्तरा चेव, महावित्थिण्णतरा चेव, महोवासतरा चेव, महापइरिक्कतरा चेव। महप्पवेसणतरा चेव, आइण्णतरा चेव, आउलतरा चेव, अणोमाणतरा चेव। तेसु णं नरएसु नेरइया अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएहितो अप्पकम्मतरा चेव, अप्पकिरियतरा चेव, अप्पासवतरा चेव, अप्पवेयणतरा चेव, नो तहा महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महासवतरा चेव, महावेयणतरा चेव। महिड्ढियतरा चेव, महज्जुइयतरा चेव, नो तहा अप्पिड्ढियतरा चेव, अप्पजुइयतरा चेव। छट्ठीए णं तमाए णरगा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नेरएहितो महत्तरा चेव, महावित्थिण्णतरा चेव, महोवासतरा चेव, महापइरिक्कतरा चेव। नो तहा महप्पवेसणतरा चेव, आइण्णतरा चेव, आउलतरा चेव, अणोमाणतरा चेव। तेसु णं नरएसु नेरइया पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए नेरइएहितो महाकम्मतरा चेव, महाकिरियतरा चेव, महासवतरा चेव, महावेयणतराचेव। नो तहा अप्पकम्मतरा चेव,अप्पकिरियतरा चेव, अप्पासवतरा चेव, अप्पवेयणतरा चेव। अप्पिड्ढियतरा चेव, अप्पजुइयतरा चेव, नोतहा महड्ढियतरा चेव, महज्जुइयतरा चेव। पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिण्णि निरयावाससयसहस्सा पण्णत्ता। एवं जहा छट्ठीए पुढवीए भणिया तहा सत्त वि पुढवीओ परोप्पर भण्णंति जाव रयणप्पभंति जाव नो तहा महड्ढियतरा चेव, महज्जुइयतराचेव, अप्पिड्ढियतरा चेव, अप्पज्जुइयतरा चेव। -विया.स.१३,उ.४,सु.२-५ पृ.८० चमरिन्देण नट्टविहि उवदंसणंसूत्र १६१ (ख) तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे अमरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरसि सीहासंणसि चउसठ्ठीए सामाणियसाहम्सीहिं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। -विया. स. ३, उ.२,सु.२ द्रव्यानुयोग-(३) वे नरकावास छट्ठी तम:प्रभापृथ्वी के नरकावासों से महत्तर (बड़े) हैं, महाविस्तीर्णतर हैं, महान् अवकाश वाले हैं, बहुत रिक्त स्थान वाले हैं, किन्तु वे महाप्रवेश अत्यन्त आकीर्णतर, प्रचुरतर और अनवमानतर नहीं है। उन नरकावासों में रहे हुए नैरयिक छठी तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महाकर्म वाले, महाक्रिया वाले, महाश्रव वाले एवं महावेदना वाले हैं। किन्तु अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्पआश्रव और अल्पवेदना वाले नहीं हैं। वे नैरयिक अल्प ऋद्धि वाले और अल्प द्युति वाले हैं, किन्तु महान् ऋद्धि वाले और महान् धुति वाले नहीं हैं। छठी तमःप्रभापृथ्वी में पाँच कम एक लाख नरकावास कहे गए हैं। वे नरकावास अधःसप्तमपृथ्वी के नरकावासों के जैसे महत्तर महाविस्तीर्ण, महान् अवकाश वाले और शून्य स्थान वाले नहीं हैं। वे (सप्तम नरकपृथ्वी के नरकावासों की अपेक्षा) महाप्रवेश वाले, संकीर्ण, व्याप्त और विशाल हैं। उन नरकावासों में रहे हुए नैरयिक अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्प आश्रव और अल्पवेदना वाले हैं, किन्तु वे (अधःसप्तमपृथ्वी के नारकों के समान) महाकर्म, महाक्रिया, महाश्रव और महावेदना वाले नहीं हैं। वे (उनकी अपेक्षा) महान् ऋद्धि और महान् धुति वाले हैं, किन्तु वे (उनकी तरह) अल्प ऋद्धि वाले और अल्प द्युति वाले नहीं हैं। छठी तमःप्रभा नरकपृथ्वी के नरकावास पाँचवीं धूमप्रभा नरकपृथ्वी के नरकावासों से महत्तर, महाविस्तीर्ण, महान् अवकाश वाले और महान रिक्त स्थान वाले हैं। किन्तु वे (पंचम नरकपृथ्वी के नरकावासों की तरह) महाप्रवेश वाले, संकीर्ण, व्याप्त और विशाल नहीं हैं। छठी पृथ्वी के नरकावासों के नैरयिक पाँचवीं धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा महाकर्म, महाक्रिया, महाश्रव तथा महावेदना वाले हैं। किन्तु उनकी (पाँचवीं धूमप्रभा के नारकों की तरह वे अल्पकर्म अल्पक्रिया अल्पाश्रव एवं अल्पवेदना वाले नहीं हैं। वे उनसे अल्प ऋद्धि वाले और अल्प द्युति वाले हैं किन्तु महान् ऋद्धि वाले और महान् धुति वाले नहीं हैं। पाँचवीं धूमप्रभापृथ्वी में तीन लाख नरकावास कहे गए हैं। इसी प्रकार जैसे छठी तमःप्रभापृथ्वी के लिए कहा उसी प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी पर्यंत सातों नरकपृथ्वियों के लिए परस्पर कहना चाहिए कि (शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक-रलप्रभापृथ्वी के नैरयिकों की अपेक्षा (महान् ऋद्धि और महान् द्युति वाले नहीं हैं। किन्तु वे (उनकी अपेक्षा) अल्प ऋद्धि और अल्प द्युति वाले हैं। चमरेन्द्र द्वारा नाट्य विधि का उपदर्शन उस काल और उस समय में चौंसठ हजार सामानिक देवों से परिवृत होकर अपनी चमरचंचा नामक राजधानी की सुधर्मासभा में चमर नामक सिंहासन पर स्थित असुरेन्द्र असुरराज चमर ने (राजगृह में विराजमान भगवान को अवधिज्ञान से देखा) यावत् नाट्यविधि दिखलाकर जिस दिशा से आया था उसी दिशा में वापस लौट गया।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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