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________________ १९९५ २.(उससे) ऊर्ध्वलोक असंख्यातगुणा है। ३.(उससे) अधोलोक विशेषाधिक है। आठ पृथ्वियाँ प्र. भंते ! पृथ्वियाँ कितनी कही गई हैं ? उ. गौतम ! आठ पृथ्वियाँ कही गई हैं, यथा १.रलप्रभा, २. शर्कराप्रभा, ३. बालुकाप्रभा, ४. पंकप्रभा, ५.धूमप्रभा, ६.तम प्रभा,७. महातमःप्रभा,८.ईषयाग्भारा। सभी पृथ्वियों का तीन वलयों से परिवृत्त होने का प्ररूपण सभी पृथ्वियाँ तीन वलयों से सर्वतः परिवृत (घिरी) हुई हैं, यथा १.घनोदधि वलय से, २.घनवात वलय से. ३. तनुवात वलय से। परिशिष्ट : ३ गणितानुयोग २. उड्ढलोए असंखेज्जगुणे, ३.अहेलोए विसेसाहिए। -विया. स. १३, उ.४, सु.७० अधोलोक पृ.३६ अट्ठ पुढवीओसूत्र ७५ (ख) प. कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ? उ. गोयमा ! अट्ठ पुढवीओ पण्णत्ताओ,तं जहा १. रयणप्पभा, २. सक्करप्पभा, ३. वालुयप्पभा, ४. पंकप्पभा, ५.धूमप्पभा,६. तमप्पभा,७. तमतमा',८.ईसीपब्मारा। -विया. स.६,उ.८,सु.१ एगमेगा पुढवी तिहिं वलएहिं परिक्खित्तत परूवणंसूत्र ७५ (ग) एगमेगा णं पुढवी तिहिं वलएहिं सवओ समंता संपरिक्खित्ता, तंजहा१.घणोदधिवलएणं, २.घणवायवलएणं, ३.तणुवायवलएणं। -ठाणं अ.३,उ.४,सु.२२४ पृ.४७ महाहिमवंत रूप्पिवासहर पव्वएहितो सोगंधिय कंडस्स अंतरंसूत्र १०२ (ख) महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं बासीई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं स्वप्पिस्स वि। -सम. सम.८२,सु.३-४ महाहिमवंत कूडेहिंतो सोगंधिय कंडस्स अंतर परूवणंसूत्र १०२ (ग) महाहिमवंत कूडस्स णं उवरिल्लाओ चरिमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं सत्तासीइं जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं रूप्पिकूडस्स वि। -सम. सम.८७, सु.६-७ वट्टवेयड्ढपव्वएहिंतो सोगंधियकंडस्स अंतरंसूत्र १०२ (घ) सव्वेसि णं वट्टवेयड्ढपव्वयाणं उवरिल्लाओ सिहरतलाओ सोगंधियकंडस्स हेट्ठिल्ले चरिमंते, एस णं नउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। -सम.सम. ९०,सु.५ पृ.७३ नरय नेरइयाणं परोप्परं अप्पमहत्तरत्त परूवणंसूत्र १५४ (ख) अहेसत्तमाए णं भंते। पुढवीए पंच अणुत्तरा महइ महालया महानिरया पण्णत्ता,तं जहा१.काले, २. महाकाले,३.रोरूए,४. महारोरूए,५.अपइट्ठाणे। महाहिमवंत-रुक्मी वर्षधर पर्वतों से सौगंधिक कांड का अंतर महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के ऊपर के चरमान्त से सौगंधिक कांड के नीचे के चरमान्त का अबाधा अन्तर बयासी सी योजन का कहा गया है। इसी प्रकार रुक्मी वर्षधर पर्वत से अंतर के लिए जानना चाहिए। महाहिमवंत कूट से सौगंधिक कांड के अंतर का प्ररूपण महाहिमवंत कूट के उपरितन चरमान्त से सौगंधिक कांड के नीचे के चरमान्त का अबाधा अन्तर सत्तासी सौ योजन का कहा गया है। इसी प्रकार रुक्मी कूट से अंतर के लिए जानना चाहिए। वृत्तवैताढ्य पर्वतों से सौगंधिक कांड का अंतर सभी वृत्तवैताढ्य पर्वतों के उपरितन शिखरतल से सौगंधिक कांड के नीचे के चरमान्त का अबाधा अन्तर नौ सौ (हजार) योजन का कहा गया है। नरक और नैरयिकों का परस्पर अल्पमहत्तरत्व का प्ररूपण अधः सप्तमपृथ्वी में पाँच अनुत्तर और महातिमहान् नरकावास कहे गए हैं,यथा१.काल,२.महाकाल,३.रौरव,४. महारौरव,५.अप्रतिष्ठान। १. (क) विया.स.१३,उ.४,सु.१ (ग) विया.स.६.उ.६,सु.१ २. ठाणं,अ.८,सु.६४८ (ख) विया.स.१२, उ.७,सु.४ (घ) विया.स.१३,उ.१,सु.३
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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