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________________ १९७८ भाग १, खण्ड १, पृ. १६४ विमलस्स अरहओ अणुपिट्टि सिखाई पुरिसजुगाई संखा परूवणंसूत्र ४३७ (घ) विमलस्स णं अरहओ चोयालीसं पुरिसजुगाई अणुपिट्ठि सिद्धा बुद्धाई मुत्ताई अंतगडाई परिणिब्बुयाई सव्वदुक्खप्पहीणाई । -सम. सम. ४४, सु. २ भाग १, खण्ड १, पृ. २५६ कण्ह वासुदेवस्स परिनिव्वुड अट्ठ अग्गमहिसीओ सूत्र ६३१ (ख) कव्हरस णं वासुदेवस्स अड्ड अग्गमहिसीओ अरहओ अरिट्ठमिस्स अंतिए मुंडा भवेत्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया सिद्धाओ बुद्धाओ मुत्ताओ अंतगडाओ परिणिब्बुडाओ सब्वदुक्ाप्यहीणाओ तं जहा , १. पउमावई य, २. गोरी, ३. गंधारी, ४. लक्खणा, ५. सुसीमा य। ६. जंबवती, ७. सच्चभामा, ८. रूप्पिणी अग्गमहिसीओ। - ठाणं. अ. ८, सु. ६२८ सूत्र ४२१ (ख) जंबुद्दीचे दीवे मंदरस पव्ययस्स पुरन्धिमे णं सीयाए महाणईए उत्तरेणं उक्कोसपर अड्ड अरहंता, अड्ड चकवड़ी, अड्डु बलदेवा, अड्ड वासुदेवा उपज्जिसुवा, उप्पज्जंति, उप्पज्जिस्संति वा । जंबुद्दीये दीवे मंदरस्स पव्ययस्स पुरत्विमे सीधाए महाराईए दाहिणे णं उक्कोसपए अट्ठ अरहंता, अट्ठ चक्कवट्टी, अट्ठ बलदेवा, अट्ठ वासुदेवा उपजिया उप्पज्जति था, उपज्जिस्पति वा । " जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महाणईए दाहिणे णं उसपए अ अरहंता, अड्ड चट्टी, अट्ठ बलदेवा, अड्ड वासुदेवा उष्परिजं उप्पज्जेति वा उच्चज्जिस्सति वा । एवं उत्तरेण वि । " - ठाणं अ. ८, सु. ६३८ भाग १, खण्ड १, पृ. १८५ अज्ज सुहम्मे सव्वाउ भाग १, खण्ड १, पृ. १५८ जंबुद्दीवे मंदर पव्वयस्स पुरत्थिमाइ दिसासु उक्कोसेणं अरहंताईणं जम्बूद्वीप के मंदर पर्वत की पूर्वादि दिशाओं में उत्कृष्टतः अरिहंत उप्पत्ति परूवणं आदिकों की उत्पत्ति का प्ररूपण सूत्र ४७५ (ग) थेरे णं अज्जसुहम्मे एक्कं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे । - सम. १००, सु. ५ भाग १, खण्ड १, पृष्ठ १८५ भगवओ महावीरस्स गोयमगणहरे सूत्र ४७६ (क) रायगिहे जाय परिसा पडिगया, द्रव्यानुयोग - ( ३ ) गोयमा ! दी समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासि भ. विमलनाथ के बाद अनुक्रम से सिद्ध हुए पुरुष युगों की संख्या का प्ररूपण अर्हत् विमलनाथ के बाद चौवालीस पुरुष युग अनुक्रम से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत्त हुए तथा सर्व दुःखों का कप किया। कृष्ण वासुदेव की परिनिर्वृत्त आठ अग्रमहिषियों वासुदेव कृष्ण की आठ अग्रमहिषियाँ अर्हत् अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर, आगार से अनगार अवस्था में प्रव्रजित होकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत्त और समस्त दुःखों के रहित हुई, यथा १. पद्मावती, २. गौरी, ३. गांधारी ४. लक्ष्मणा, ५. सुसीमा, ६. जाम्बवती, ७. सत्यभामा, ८. रुक्मिणी । जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के उत्तर में उत्कृष्ट आठ अर्हत, आठ चक्रवर्ती, आठ बलदेव और आठ वासुदेव उत्पन्न हुए थे, होते हैं और होंगे। जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के दक्षिण में उत्कृष्ट आठ अर्हत, आठ चक्रवर्ती, आठ बलदेव और आठ वासुदेव उत्पन्न हुए थे, होते हैं और होंगे। जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के दक्षिण में उत्कृष्ट आठ अर्हत, आठ चक्रवर्ती, आठ बलदेव और आठ वासुदेव उत्पन्न हुए थे, होते हैं और होंगे। इसी प्रकार उत्तर दिशा के भी जानना चाहिए। आर्य सुधर्मा स्वामी की सर्वायु स्थविर आर्य सुधर्मा स्वामी सौ वर्षों की सर्वायु भोगकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत और परिनिर्वृत्त हुए तथा सर्व दुःखों से रहित हुए। भगवान महावीर के गौतम गणधर राजगृह नगर में (महावीर का पर्दापण हुआ) यावत् धर्मोपदेश सुनकर परिषदा लौट गई। श्रमण भगवान महावीर ने 'हे गौतम !' इस प्रकार भगवान गौतम को सम्बोधित करके इस प्रकार कहा
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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