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________________ परिशिष्ट-३ प्रकीर्णक द्रव्यानुयोग के प्रकाशन से पूर्व भी धर्मकथानुयोग ( भाग १-२ ), गणितानुयोग तथा चरणानुयोग ( भाग १-२ ) यों कुल ५ भाग प्रकाशित हो चुके हैं। द्रव्यानुयोग के सम्पादन के समय उक्त प्रकरणों से सम्बन्धित कुछ पाठ प्राप्त हुए जो किसी कारणवश उन ग्रन्थों में संकलित नहीं हो सके। अतः यहाँ पर उन विषयों से सम्बन्धित अवशेष पाठों का संकलन किया गया है। पाठक यथास्थान उक्त अवशेष पाठ संयोजित कर लेवें । -संपादक भाग १, खण्ड १, पृ. १५९ ६. उत्तिणाणुपुच्ची सूत्र ४२६ (ख) प से किं तं उक्तित्तणाणुपुव्वी ? उ उमित्तणाणुपुच्चीतिविहा पण्णत्ता, तं जहा धर्मकथानुयोग प्रकीर्णक अवशेष पाठों का संकलन (कोने पर संबंधित पाठों के पृष्ठ व सूत्रांक अंकित हैं) १. पुव्वाणुपुव्वी, २. पच्छाणुपुब्वी, ३. अणाणुपुब्बी । प. १. से किं तं पुव्वाणुपुवी ? उ. पुव्वाणुपुव्वी १. उसभे, २. अजिए. ३. संभवे, ४. अभिनंदे, ५. सुमती, ६. पउमप्पभे, ७. सुपासे, ८. चंदप्प, ९. सुविही, १०. सीतले, ११. सेज्जसे, १२. वासुपुज्जे, १३. विमले, १४. अणंते, १५. धम्मे, १६. संती, १७. कुंथू, १८. अरे, १९. मल्ली, २०. मुणिसुव्वए, २१. णमी, २२. अरिट्ठणेमी, २३. पासे, २४. वद्धमाणे । सेतं पुव्वाणुपुवी। प. २. से किं तं पच्छाणुपुव्वी ? उ. पचाणुपुच्ची २४ वद्धमाणे २३. पासे जाब १. उसमे " सेतं पच्छाणुपुची। प. ३. से किं तं अणाणुपुच्ची ? उ. अणागुपुच्ची- एयाए चेव एगादियाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए चडवीसगचडगवाए सेडीए अण्णमण्णासो दुरुणो । तं णाणु सेतं उक्तित्तणाणुपुवी। - अणु. सु. २०३ ६. उत्कीर्तनानुपूर्वी (१९७७) प्र. उत्कीर्तनानुपूर्वी क्या है? उ. उत्कीर्तनानुपूर्वी तीन प्रकार की कही गई है, यथा१. पूर्वानुपूर्वी, २. पश्चानुपूर्वी, ३. अनानुपूर्वी । प्र. १. पूर्वानुपूर्वी क्या है ? उ. पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार है १. ऋषभ, २. अजित, ३. सम्भव, ४ अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभ ७. सुपार्श्व ८. चन्द्रप्रभ, ९. सुविधि, १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति, १७. कुन्यु, १८. अ. १९. मल्लि २० मुनिसुव्रत, , २१. नमि २२. अरिष्टनेमि २३ पा २४ वर्धमान । पूर्वानुपूर्वी है। प्र. २. पश्चानुपूर्वी क्या है? उ. व्युत्क्रम से अर्थात् २४. वर्धमान, २३. पार्श्व यावत् १. ऋषभ नामोच्चारण करना पश्चानुपूर्वी है। यह पश्चानुपूर्वी है। प्र. ३. अनानुपूर्वी क्या है? उ. इन्हीं (ऋषभ से वर्धमान पर्यन्त) की एक से लेकर एक-एक की वृद्धि करके चौबीस संख्या की श्रेणी स्थापित कर परस्पर गुणाकार करने से जो राशि बनती है उसमें से प्रथम और अन्तिम इन दो भंगों को कम करने पर शेष भंग अनानुपूर्वी कहलाते हैं। यह अनानुपूर्वी है। यह उत्कीर्तनानुपूर्वी का वर्णन है।
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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