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________________ ( १९०६ - ३५. छहिं दिसाहिं जीवाणं गई-आगई पवत्ति परूवणं छद्दिसाओ पण्णत्ताओ,तं जहा१. पाईणा, २. पडीणा, ३. दाहिणा, ४. उदीणा, ५. उड्ढा , ६. अहा। छहिं दिसाहिं जीवाणं गइ पवत्तइ,तं जहा द्रव्यानुयोग-(३) ३५. छहों दिशाओं में जीवों की गति-आगति आदि प्रवृत्तियों का प्ररूपणदिशाएँ छह प्रकार की कही गई हैं, यथा१. पूर्व, २. पश्चिम, ३. दक्षिण, ४. उत्तर, ५. ऊर्ध्व, ६. अधः। छहों ही दिशाओं में जीवों की गति (वर्तमान भव से अग्रिम भव में जाने रूप गति) होती हैं, यथा१. पूर्व यावत् ६. अधो दिशा। १. पाइणाए जाव ६.अहाए। छहिं दिसाहिं जीवाणं२. आगई ३. वकंती, ४. आहारे, ५. वड्ढी , ६. णिवड्ढी, ७. विगुव्वणा, ८. गइपरियाए, ९. समुग्घाए, १०. कालसंजोगे, ११. दसणाभिगमे, १२. णाणाभिगमे १३. जीवाभिगमे, १४. अजीवाभिगमे पण्णत्ते,तं जहा २. आगति-पूर्व भव से प्रस्तुत भव में आना, ३. अवक्रान्ति-उत्पत्ति स्थान में जाकर उत्पन्न होना, ४. आहार-प्रथम समय में जीवनोपयोगी पुद्गलों का संचय करना, ५. वृद्धि-शरीर की वृद्धि, ६. हानि-शरीर की हानि ७. विक्रिया-विकुर्वणा करना, ८. गति-पर्याय-गमन करना (यहाँ इसका अर्थ परलोकगमन नहीं है) ९. समुद्घात-वेदना आदि में तन्मय होकर आत्मप्रदेशों का .. इधर-उधर प्रक्षेप करना, १०. काल संयोग-सूर्य आदि द्वारा कृत काल विभाग, ११. दर्शनाभिगम-अवधि आदि दर्शन के द्वारा वस्तु का परिज्ञान, १२. ज्ञानाभिगम-अवधि आदि ज्ञान के द्वारा वस्तु का परिज्ञान, १३. जीवाभिगम-अवधि आदि ज्ञान के द्वारा जीव का परिज्ञान, १४. अजीवाभिगम-अवधि आदि ज्ञान के द्वारा पुद्गलों का परिज्ञान, ये छहों दिशाओं में जीवों के होते हैं, यथा१. पूर्व यावत् ६. अधो दिशा इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्यों की गति आगति आदि छहों दिशाओं में होती है। ३६. विष परिणाम के छह प्रकार विष का परिणाम छह प्रकार का कहा गया है, यथा१. दष्ट-विषैले प्राणी द्वारा काट जाने पर प्रभाव डालने वाला, २. भुक्त-खाए जाने पर प्रभाव डालने वाला, ३. निपतित-शरीर के बाहरी भाग से स्पृष्ट होकर प्रभाव डालने वाला, ४. मांसानुसारी-मांस तक की धातुओं को प्रभावित करने वाला, ५. शोणितानुसारी-रक्त तक की धातुओं को प्रभावित करने वाला, ६. अस्थिमज्जानुसारी-अस्थि मज्जा तक की धातुओं को प्रभावित करने वाला। ३७. वचन प्रयोग के सात प्रकार वचन के सात विकल्प कहे गए हैं, यथा १.पाईणाए जाव६.अहाए एवं पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाण विमणुस्साण वि। -ठाणं. अ.६.सु.४९९ ३६. विस परिणामस्स छव्विहत्तं छविहे विसपरिणामे पण्णत्ते,तं जहा१. डक्के, २. भुत्ते, ३. निवइए, ४. मंसाणुसारी, ५. सोणियाणुसारी, ६. अट्ठिमिंजाणुसारी। -ठाणं. अ.६,सु.५३३ ३७. सत्तवयण पओग पगारा सत्तविहे वयणविकप्पे पण्णत्ते,तं जहा
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
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