SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९०२ ३. सिप्पणिही, ४. धणणिही, ५. धन्नणिही। -ठाणं. अ.५, उ.३, सु. ४४८ २६. इंदियविसएसु रज्जाइ पंच हेऊ पंचहिं ठाणेहिं जीवा सज्जंति,तं जहा१. सद्देहि, २. रूवेहि, ३. गंधेहिं, ४. रसेहिं ५. फासेहिं। एवमेव रज्जंति, मुच्छंति, गिझंति, अज्झोववज्जति विणिघायमावज्जंति। -ठाणं. अ. ५, उ.१, सु. ३९० २७. पडिहाणं पंच पगारा पंचविहा पडिहा पण्णत्ता,तं जहा१. गइपडिहा, द्रव्यानुयोग-(३) ३. शिल्पनिधि, ४. धननिधि, ५. धान्यनिधि। २६. इन्द्रिय विषयों में अनुरक्ति के पाँच हेतु जीव पाँच स्थानों से लिप्त होते हैं, यथा१. शब्द से, २. रूप से, ३. गंध से, ४. रस से, ५. स्पर्श से। इसी प्रकार इन पाँच कारणों से अनुरक्त, मूर्छित, गृद्ध, आसक्त और विनष्ट होते हैं। २७. प्रतिघातों के पाँच प्रकार प्रतिघात (स्खलन) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा१. गति-प्रतिघात-अशुभ प्रवृत्ति के द्वारा प्रशस्त गति का अवरोध, २. स्थिति-प्रतिघात-उदीरणा के द्वारा कर्म-स्थिति का अल्पीकरण, ३. बन्धन-प्रतिघात-प्रशस्त औदारिक शरीर आदि की प्राप्ति का अवरोध, ४. भोग-प्रतिघात-सामग्री के अभाव में भोग की अप्राप्ति, ५. बल, वीर्य, पुरुषकार और पराक्रम का प्रतिघात। २. ठिइपडिहा, ३. बंधणपडिहा, ४. भोगपडिहा, ५. बल-वीरिय-पुरिसक्कार-परक्कमपडिहा। -ठाण.अ.५, उ.१,सु.४०६ २८. आज़ीवगाणं पंच पगारा पंचविहे आजीवे पण्णत्ते,तं जहा१. जाईआजीवे, २. कुलाजीवे, ३. कम्माजीवे, ४. सिप्पाजीवे, ५. लिंगाजीवे। -ठाणं.अ.५, उ.१,सु.४०७ २९. सुत्तस्स विबुज्झण पंच हेऊ पंचहिं ठाणेहिं सुत्ते विबुज्झेज्जा,तं जहा१. सद्देणं, २. फासेणं, ३. भोयणपरिणामेणं, ४. णिद्दक्खएणं, ५. सुविणदसणेणं। -ठाणं. अ.५, उ.२, सु. ४३६ ३०. सोयस्स पंच पगारा पंचविहे सोए पण्णत्ते,तं जहा१. पुढविसोए, २. आउसोए, ३. तेउसोए, ४. मंतसोए, ५. बंभसोए। -ठाणं अ.५, उ.३, सु.४४९ ३१. उक्कलाणं पंच पगारा पंच उक्कला पण्णत्ता,तं जहा २८. आजीवकों के पाँच प्रकार आजीवक पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. जात्याजीव-जाति से आजीविका करने वाला, २. कुलाजीव-कुल से आजीविका करने वाला, . '३. कर्माजीव-कृषि आदि से आजीविका करने वाला, ४. शिल्पाजीव-कला से आजीविका करने वाला, ५. लिंगाजीव-वेष आदि से आजीविका करने वाला। २९. सुप्त के जागृत होने के पाँच हेतु पाँच कारणों से सोया हुवा मनुष्य जागृत हो जाता है, यथा१. शब्द से, २. स्पर्श से, ३. भोजन परिणाम, (भूख से) ४. निद्राक्षय से, ५. स्वप्नदर्शन से। ३०. शौच के पाँच प्रकार शौच (शुद्धि) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा१. पृथ्वी शौच-मिट्टी द्वारा शुद्धि करना, २. जलशौच-जल द्वारा शुद्धि करना, ३. तेजःशौच-अग्नि द्वारा शुद्धि करना, ४. मन्त्रशौच-मन्त्र द्वारा शुद्धि करना, ५. ब्रह्मशौच-ब्रह्मचर्य आदि के आचरण द्वारा शुद्धि करना। ३१. उत्कल के पाँच प्रकार उत्कल अथवा उत्कट (प्रबल, प्रचंड) पाँच प्रकार का कहा गया है, यथा
SR No.090160
Book TitleDravyanuyoga Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1995
Total Pages670
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy